नन्हा मन

बच्चों, बहुत खोजबीन के बाद, अचपन जी ने नन्हा मन पर उड़न तश्तरी उतारने में सफलता पाई ! देखा ? तो.. सी-बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया दो !

18 नवंबर 2008

नन्हा मन- बाल-कविताएँ



1.परियों की शहज़ादी

मैं शहज़ादी परियों की हूँ
आसमान में मेरा घर
राहों में मेरी बिछे सितारे
मेरा पता है चाँद नगर
मैं कलियों सी सुन्दर कोमल
चाहूँ जहाँ पे जाती हूँ
हवा के संग में बातें करती
नीलगगन में उड़ती हूँ
हरी भरी धरती को देखूँ
आसमान में बादल को
देखूँ नदियाँ झरने पर्वत
और पेड़ों की हलचल को
कुदरत का संगीत मैं सुनती
देखूँ इसकी सुन्दरता
फूलों से खुशबू लेती हूँ
और भँवरों से चंचलता
नन्हे बच्चे मुझको भाते
और भाता है भोलापन
न दुनियादारी न झँझट
कितना प्यारा यह बचपन
मन में मैल नहीं बच्चों के
न ही कुछ खोने का डर
राहों में मेरी बिछे सितारे
मेरा पता है चाँद नगर

रचनाकार- सीमा सचदेव
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2.चाँद पे होता घर जो मेरा


चाँद पे होता घर जो मेरा
रोज़ लगाती मैं दुनिया का फेरा
चंदा मामा के संग हँसती
आसमान में ख़ूब मचलती

ऊपर से धरती को देखती
तारों के संग रोज़ खेलती
देखती नभ में पक्षी उड़ते
सुंदर घन अंबर में उमड़ते

बादल से मैं पानी पीती
तारों के संग भोजन करती
टिमटिमाटे सुंदर तारे
लगते कितने प्यारे-प्यारे

कभी-कभी धरती पर आती
मीठे-मीठे फल ले जाती
चंदा मामा को भी खिलाती
अपने ऊपर मैं इतराती

जब अंबर में बादल छाते
उमड़-घुमड़ कर घिर-घिर आते
धरती पर जब वर्षा करते
उसे देखती हँसते-हँसते

मैं परियों सी सुंदर होती
हँसती रहती कभी न रोती
लाखों खिलौने मेरे सितारे
होते जो है नभ में सारे

धरती पर मैं जब भी आती
अपने खिलौने संग ले आती
नन्हे बच्चों को दे देती
कॉपी और पेन्सिल ले लेती

पढ़ती उनसे क ख ग
कर देती मामा को भी दंग
चंदा को भी मैं सिखलाती
आसमान में सबको पढ़ाती

बढ़ते कम होते मामा को
समझाती मैं रोज़ शाम को
बढ़ना कम होना नहीं अच्छा
रखो एक ही रूप हमेशा


धरती पर से लोग जो जाते
जो मुझसे वह मिलने आते
चाँद नगर की सैर कराती
उनको अपने घर ले जाती

ऊपर से दुनिया दिखला कर
चाँद नगर की सैर करा कर
पूछती दुनिया सुंदर क्यों है?
मेरा घर चंदा पर क्यों है?

धरती पर मैं क्यों नहीं रहती?
बच्चों के संग क्यों नहीं पढ़ती?
क्यों नहीं है इस पे बसेरा ?
चाँद पे होता घर जो मेरा?

रचनाकार- सीमा सचदेव

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3.मेरी गुड़िया

मेरी गुड़िया प्यारी-प्यारी
बातें उसकी न्यारी-न्यारी
नन्ही सी यह फूल सी बच्ची
छोटी सी पर दिल की सच्ची

कोमल-कोमल हाथों वाली
नीली-नीली आँखों वाली
गोरे-गोरे गाल हैं उसके
भूरे-भूरे बाल हैं उसके

नन्हे पैरों से जब चलती
गिर जाए तो ख़ुद ही संभलती
जाय वहीं मम्मी जहाँ जाय
ख़ाय वही मम्मी जो खिलाय

पापा की है राज दुलारी
मम्मी की है दुनिया सारी
पापा जब आफ़िस से आएँ
झट उनकी गोदि चढ़ जाए

परियों की सी मेरी रानी
बातों में तो सब की नानी
बोले जब वह तूतली बोली
भर जाए खुशियों से झोली

मम्मी पापा की जिंद-जान
करेगी जग में ऊँचा नाम
मीठी-मीठी शहद की पुड़िया
कितनी प्यारी है मेरी गुड़िया

रचनाकार- सीमा सचदेव
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4.धरती माता ( कविता)

धरती हमारी माता है,
माता को प्रणाम करो

बनी रहे इसकी सुंदरता,
ऐसा भी कुछ काम करो

आओ हम सब मिलजुल कर,
इस धरती को ही स्वर्ग बना दें

देकर सुंदर रूप धरा को,
कुरूपता को दूर भगा दें

नैतिक ज़िम्मेदारी समझ कर,
नैतिकता से काम करें

गंदगी फैला भूमि पर
माँ को न बदनाम करें

माँ तो है हम सब की रक्षक
हम इसके क्यों बन रहे भक्षक

जन्म भूमि है पावन भूमि,
बन जाएँ इसके संरक्षक

कुदरत ने जो दिया धरा को
उसका सब सम्मान करो

न छेड़ो इन उपहारों को,
न कोई बुराई का काम करो

धरती हमारी माता है,
माता को प्रणाम करो

बनी रहे इसकी सुंदरता,
ऐसा भी कुछ काम करो


अपील:- विश्व धरा दिवस के अवसर पर आओ हम सब धरा को सुन्दर बनाने में सहयोग दें हमारी धरती की सुन्दरता को बनाए रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है....... सीमा सचदेव

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5.पक्षी होता मैं नीलगगन का

पक्षी होता मैं नीलगगन का
मीठा फल खाता मैं चमन का
इधर-उधर उड़-उड़ कर जाता
सुंदर सा इक घर मैं बनाता

मेरे सुंदर पंख भी होते
कोमल-कोमल छोटे-छोटे
अपने सुंदर पंख फैलाता
दूर गगन में उड़ कर जाता


उड़ते-उड़ते जब तक जाता
नीचे धरती पर आ जाता
फल वाले उपवन में जाता
मीठे-मीठे फल मैं खाता

जहाँ से चाहता प्यास बुझाता
जहाँ भी चाहता वहीं पे रहता
बच्चों को मैं दोस्त बनाता
मीठे फल उनको भी खिलाता

दुनिया का चक्कर मैं लगाता
उड़ता रहता कभी न रुकता
तरह-तरह का खाना खाता
जो भी मिलता, जहाँ मैं जाता

बनाता एक मित्रों की टोली
हम भी खूब खेलते होली
रंग-बिरंगे पंखों वाले
हम भी लगते कितने प्यारे

खाने का नहीं लालच करता
जाल में तो कभी न फँसता
उड़ कर किसी तरह बच जाता
मानव के कभी हाथ न आता

खुली हवा में खुले गगन में
रहते हम भी अपनी लगन में
पूरी दुनिया मेरा घर होती
क्या नदिया क्या पर्वत चोटी

पर मुझको कुछ दुख भी होता
बच्चों के संग पढ़ नहीं सकता
न मैं कभी स्कूल को जाता
न कॉपी पेन्सिल ही उठाता

मम्मी न मुझको सुबह जगाती
न वो सुबह-सुबह नहलाती
न तो खाना प्यार से मिलता
न इतना सुंदर घर होता

सर्दी-गर्मी से न बचता
मानव से डरता ही रहता
न मैं हँसता न मैं बोलता
अपना दुख फिर किससे कहता

रचनाकार- सीमा सचदेव
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6.आज़ादी की पहचान तिरंगा


जय हिन्द जय भारत माता
इनसे अपना गहरा नाता
तिरंगा अपनी है पहचान
भारत की ऊँची है शान
तीन रंग इसको सजाते
सब अपना मतलब समझाते
रंग केसरी बलिदानी का
और वीरों की कुर्बानी का
शान्ति का प्रतीक सफेद
नहीं किसी से कोई भेद
हरा रंग लाए हरियाली
भारत मे छाए खुशहाली
आज़ादी के तीनो रंग
जय हिन्द मिलकर बोलो संग
जय भारत सब मिलकर गाएँ
आओ आज़ादी दिवस मनाएँ

आज़ादी दिवस की सभी हिन्दवासियो को हार्दिक बधाई जय हिन्द

रचनाकार- सीमा सचदेव
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7.प्रार्थना

जय गणपति बाबा गजानन्द
तुझसे ही जीवन में आनन्द
प्रणाम तुम्हें हे मोदक प्रिय
तेरे नाम से मिल जाती है विजय
सर्व-प्रथम तेरा पूजन
हम करते तेरा अभिनन्दन
चरणों में फूल चढाएँ हम
कर जोरि के शीश झुकाएँ हम
शक्ति दो हम न घबराएँ
हर घर में खुशहाली आए
अगले वर्ष जल्दी आना
हर मन में खुशियाँ भर जाना

रचनाकार- सीमा सचदेव
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8.हफ्ते के दिन
बच्चो सुनो ध्यान से बात
हफ्ते मे होते दिन सात

1. सोमवार

सोमवार आया पहला दिन
सारे ही हो जाते है खिन्न
सुबह सवेरे जल्दी जागे
और फिर अपने काम पे भागे

2.मंगलवार
दूजा दिन है मंगलवार
जाओ जब मन्दिर के द्वार
सारे पूजा मे रत रहते
तरह तरह के लड्डू बँटते

3.बुधवार
बुधवार मंगल के बाद
बच्चो इसको रखना याद
तीसरा हफ्ते का यह वार
बाकी बचे हैं अब दिन चार

4. गुरुवार
गुरुवार चौथा दिन आया
तो सबने मन को समझाया
करना एक और दिन काम
फिर छुट्टी मे करो आराम

5. शुक्रवार
पाँचवा दिन है शुक्रवार
काम से सारे गए थक हार
किसी तरह से दिन बिताए
आगे दो दिन छुट्टी आए

6. शनिवार
शनिवार की छुट्टी आई
सबने मिलकर खुशी मनाई
देर से उठना, देर से खाना
और शाम को घूमने जाना

7. रविवार
आया सातवाँ दिन रविवार
छुट्टी मे सारा परिवार
तरह तरह का खाना खाए
छुट्टी मनाएँ और सो जाएँ

रचनाकार- सीमा सचदेव
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9.दीपावली की शुभकामनाएँ

आई दिवाली आई दिवाली
ढेरों खुशियाँ लाई दिवाली
मिलकर खाएँगे मिठाई
सजेंगें घर मे वन्दनवार
मिलेंगें ढेरों उपहार
महालक्ष्मी का होगा पूजन
लड्डू खाएँगे गजनन्दन
नए-नए कपड़े हम पहनेगे
घूम-घाम कर मजे करेंगें
जगमग-जगमग दीप जलेंगें
फुलझडियाँ और पटाखे चलेंगें
होगी रौशन काली रात
तम मे भी होगा प्रकाश
महालक्ष्मी घर मे आएगी
ढेरों खुशियाँ दे जाएगी

रचनाकार- सीमा सचदेव
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10.बूझो तो जाने


१.
बीच चौराहे करे कमाल
रँग है इसका लाल-लाल
जब यह अपना रूप दिखाए
तो चलते वाहन थम जाएँ


२.
बीच चौराहे खडी पुकारे
देखो मुझे सारे के सारे
पीली परी है बीच बाज़ार
हो जाओ चलने को तैयार


३.
हरे रँग की मै हू रानी
मै तो हूँ तुम सबकी नानी
जब भी मै कोई करूँ इशारे
भाग पडे सारे के सारे


४.
देखो इधर-उधर फिर चल दो
आजु-बाजु देखो पल दो
देखो काला और सफैद
बोलो मेरा क्या है भेद

रचनाकार- सीमा सचदेव
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11.प्यारा बचपन

नन्हे-मुन्ने प्यारे-प्यारे
सारी दुनिया से है न्यारे
फूल से सुन्दर कोमल-कोमल
नहीं मैल कोई इनके अन्दर
प्यार से ये सबके हो जाएँ
स्वयं हँसे और सबको हँसाएँ
इनसे ही महके घर-द्वार
सुन्दर सपनों का संसार
लगते कितने भोले-भाले
होते हैं सच्चे दिल वाले
बसता है इनमें भगवान
मासूमियत इनकी पहचान
नहीं किसी से बैर का भाव
नहीं किसी को देते घाव
न कोई चिन्ता न फिक्र
न ही कुछ खोने का डर
साफ स्वच्छ होता है मन
कितना प्यारा है यह बचपन

रचनाकार- सीमा सचदेव
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12.चन्द्रयान की सफलता पर हार्दिक बधाई

आज चांद पर हिन्द का परचम लहराएगा
देखते ही देखते पूरी दुनिया में छा जाएगा
आज हमारा परचम लहराया
कल हम भी चाँद पे जाएँगे
सैर करने के बहाने
चाँद पे घूम के आएँगे
इक दिन हम चाँद पे घर बनाएँगे
कभी-कभी धरती पे घूमने आएँगे
चाँद पर अब नया भारत बसेगा
हर भारतवासी इसपे गर्व करेगा
गूँजेगा हर तरफ भारत का नाम
दुनिया मे निराली होगी भारत की शान
चन्द्रयान की सफलता की शुभ-कामनाएँ
आओ नाम भारत का ऊँचा ले


रचनाकार- सीमा सचदेव

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