नन्हा मन

बच्चों, बहुत खोजबीन के बाद, अचपन जी ने नन्हा मन पर उड़न तश्तरी उतारने में सफलता पाई ! देखा ? तो.. सी-बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया दो !
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13 जुलाई 2009

बंदर की दुकान-15

चौदहवें भाग से आगे....

15. इतने में बंदरिया आई
खरी खोटी बंदर को सुनाई
बोली तुझमें नहीं अक्ल
पानी में जा देख शक्ल
रहा वही बंदर का बंदर
क्यों दुकान जंगल के अंदर
पास में था जो सब गँवाया
दुश्मन अपना सबको बनाया
हुई न एक टका भी कमाई
सारी धन संपदा गँवाई
बैठा रह तू यहाँ अकेला
मैं तो चली देखने मेला
सुनकर शेर ने सारी बात
बंदर को इक मारी लात
भागा अपनी बचा के जान
बंद हुई बंदर की दुकान

15. इतने में बंदरिया आकर बंदर को खरी खोटी सुनानी लगी। अरे तुझमें जरा सी भी अक्ल नहीं है, जंगल में दुकान क्यों खोली। कमाई तो एक पैसा भी नहीं हुई बल्कि सबको अपना दुश्मन बना लिया और पास में जितना था वो भी सब गँवा दिया है तुमने। तुम वही बंदर के बंदर हो, जरा पानी में जाकर अपनी शक्ल तो देखो। अब तुम अकेले यहाँ बैठे रहो मैं तो मेला देखने जा रही हूँ।

शेर ने बंदरिया की सारी बातें सुनकर बंदर को एक लात मारी। बंदर अपनी जान बचा कर वहां से किसी तरह से भाग गया और बंदर की दुकान बंद हो गई।

~~ समाप्त ~~

11 जुलाई 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 14

तेरहवें भाग से आगे....

14. आ दुकान पर गरजा शेर
बोला लाओ न जरा भी देर
जंगल में चुनाव का मौसम
डर लगता है मुझको हर दम
दe दो जो मुझको तुम वोट
बदले में ले लेना नोट
जीतूँगा जंगल का राज
सजेगा मेरे सिर पर ताज
तब तुम मेरे पास में आना
खोलूँगा जंगल का खजाना
जितना चाहो धन ले आना
मजे से अपनी दुकान चलाना
दुविधा में बंदर अब आया
खोल दुकान बड़ा पछताया।

14. शेर बंदर की दुकान पर आकर गरजने लगा और बोला:- जंगल में चुनाव का मौसम है, मुझे हर पल हार जाने का डर लगा रहता है। जो तुम मुझे वोट मोल दे दो तो मैं जीत जाऊँगा और जंगल का राजा बन जाऊँगा। फिर तुम मेरे पास आना तो मैं जंगल का सारा खजाना तुम्हारे लिए खोल दूँगा, तुम जितना चाहो धन ले लेना और मजे से अपनी दुकानदारी चलाना।
अब तो बंदर दुविधा में फँस गया। क्या करे क्या न करे? बेचारा बंदर दुकान खोल कर पछताने लगा।

(ज़ारी॰॰॰॰॰

10 जुलाई 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 13

बारहवें भाग से आगे....

13. इतने में इक हाथी आया
आकर अपना सूंड हिलाया
अकेलेपन से थक गया हूँ
अब मैं सचमुच पक गया हूँ
लाकर दे दो मुझको हथिनी
होगी मेरी जीवन संगिनी
वो हथिनी मैं हाथी राजा
बजेगा फिर जंगल में बाजा
बदले में तुम कुछ भी बोलो
जो चाहिए जी भर मुँह खोलो
पीठ पे अपनी बिठाऊँगा
जंगल पूरा घुमाऊँगा ।
बंदर करने लगा विचार
क्या हो हाथी का उपचार
हथिनी यहाँ कहाँ से आई
कैसे इसको दूँ विदाई ?
तभी सुनी इक शेर दहाड़
हाथी पे ज्यों टूटा पहाड़
भागा वहां से हाथी राजा
याद नहीं अब उसको बाजा।

13. इतने में ही एक हाथी दुकान पर आ पहुँचा और बंदर से कहने लगा-
"बंदर भाई, मैं अकेलेपन से थक गया हूँ, जो तुम मुझको एक हथिनी दे दो तो मैं उस संग ब्याह रचाऊँगा, जंगल में बाजा बजवाऊँगा। वो मेरी रानी होगी और मैं उसका हाथी राजा। बदले में तुम्हें जो चाहिए मुझसे ले लो। चाहो तो तुम्हें अपनी पीठ पर बैठाकर पूरे जंगल की सैर करवा दूंगा।
हाथी की बात सुन बंदर विचारने लगा कि अब इसको कैसे टरकाया जाए, भला दुकान पर हथिनी कहाँ से आई? इतने में एक शेर की दहाड़ सुनाई दी, हाथी पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा और बैण्ड-बाजा भुला वहाँ से भागने लगा।

(ज़ारी॰॰॰॰॰

09 जुलाई 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 12

ग्यारहवें भाग से आगे....

12. बोली लोमड़ी बंदर भाई
खास चीज यहां लेने आई
दे दो राजनीति का गुर
मिले जो राजा के संग सुर
उसकी पी.ए. बन जाऊं खास
भैया मेरा करो विश्वास
पी.ए. बन भी याद रखूँगी
तेरा सारा काम करुँगी
तुम तो सबसे अच्छे भाई
तेरे काम कभी मैं आई
खुद को समझूँगी मैं धन्य
नहीं तुझसा कोई भाई अन्य
समझा बंदर सारी बात
चालाकी लोमड़ी की जात
फ़िर कुछ सोच के बोला बहना
मान ले जो तू मेरा कहना
दो दिन बाद मेरे घर आना
राजनीति का गुर ले जाना
पर सोचा यह मन ही मन
यही गुर तो है उत्तम धन
गुर जो पास मेरे यह होता
खुद न पी.ए. बन जाता
12. लोमड़ी आकर बंदर से कहने लगी- "बंदर भाई! बंदर भाई, मुझे राजनीति का गुर दे दो, जिससे मैं राजा के सुर में सुर मिला सकूं और उसकी खास पी.ए. बन जाऊं। देखना पी.ए. बनकर मैं तेरे किसी काम आ सकी तो स्वयं को धन्य समझूँगी। तुम तो दुनिया के सबसे अच्छे भाई हो।"
बंदर लोमड़ी की चालाकी भरी बातें सब समझ गया और कुछ सोच कर बोला- "तुम दो दिन बाद मेरे घर पर आना और राजनीति का गुर मैं तुम्हें दे दूंगा।"
पर मन ही मन बंदर विचार करने लगा कि यही गुर तो सबसे खास है, जो यह गुर मेरे पास होता तो मैं स्वयं न राजा का पी.ए. बन जाता।

तेरहवाँ भाग

08 जुलाई 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 11

दसवें भाग से आगे....

11. भागता आया एक खरगोश
बोला मुझको दे दो जोश
सिर पर आन पड़ा है चुनाव
लगे न ऐसे में कोई घाव
करना मैंने खूब प्रचार
अपनी पार्टी का सरदार
जिताऊँगा उसको हर हाल
देखना तुम सब मेरा कमाल
जो तुम मुझमें जोश भरोगे
तो समाज की सेवा करोगे
जीते तो दूँगा उपहार
होगी जो अपनी सरकार
तो हम मिलकर मजे करेंगे
आजादी से घूमे-फिरेंगे
बंदर ने तो जुबान न खोली
इतने मे आ लोमड़ी बोली

11. इतने में भागता-भागता एक खरगोश बंदर मामा के पास आ पहुँचा और बोला:-
बंदर भाई, बंदर भाई जल्दी से मुझमें जोश भर दो। तुम तो जानते हो जंगल में चुनाव का मौसम चल रहा है और मुझे अपने उम्मीदवार के लिए खूब प्रचार करना है। उसको हर हाल में जिताना मेरी जिम्मेदारी है। जो तुम मुझमें जोश भर दोगे तो फिर मेरा कमाल देखना। ऐसा करके तुम एक तरह से समाज की सेवा ही करोगे और अगर मैं अपने सरदार को जिताने में सफल रहा तो तुम्हें भी ढेर सारे उपहार दूंगा। फ़िर जंगल में अपनी सरकार होगी, हम सब आजादी से घूमेंगे-फिरेंगे और मजे करेंगे।
बंदर मामा ने अभी कोई जवाब न दिया था कि इतने में एक लोमडी आकर बोली-

बारहवाँ भाग

07 जुलाई 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 10

नौवें भाग से आगे....

10. भाग के आया वहां सियार
बोला मुझको रंग दो यार
नीला पीला काला लाल
जो भी हो रंग मुझ पर डाल
रंग-बिरंगा बन जाऊंगा
पूरा रोब जमाऊंगा
देखो रंग न देना कच्चा
नहीं हूं मै कोई छोटा बच्चा
जिस को वर्षा भी न उतारे
दो वो रंग सारे के सारे
सुनकर बंदर को हंसी आई
लेकिन अंदर ही दबाई
ललारी को बुलवाऊंगा
उससे तुम्हें रंगवाऊंगा ।

10. गधा गया तो बंदर की दुकान पर आया एक सियार। आकर बंदर से बोला -
बंदर दोस्त, बंदर दोस्त तुम मेरे ऊपर रंग लगा दो, तुम्हारे पास नीला पीला काला, लाल....जो भी रंग हो मुझ पर डाल दो।
और हाँ रंग कच्चा नहीं होना चाहिए, मैं अब कोई छोटा बच्चा नहीं हूँ। इस लिए मुझ पर ऐसे रंग डालना जो वर्षा में भीगने पर भी न उतर सकें। तुम्हारे पास जितने भी रंग हैं मुझे सारे के सारे दे दो।

सियार की बात सुनकर बंदर को खूब हँसी आई पर अपनी हँसी को अंदर ही दबाते हुए बोला- मैं तुम्हारे लिए ललारी को बुलवा दूंगा और तुम्हें जो रंग चाहिए उस से रंगवा दूंगा।

ग्यारहवाँ भाग

06 जुलाई 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में) -9

आठवें भाग से आगे....
9. टें टें करता आया गधा
बोला तुम खुश रहो सदा
कर लो जो तुम मुझ संग यारी
चलेगी अपनी शॉप न्यारी
धोबी घाट में मैं जाऊँगा
कपड़े चुराकर ले आऊँगा
बेच के पैसे तुम ले लेना
बदले में मुझे चारा देना
बोला बंदर कर दो माफ़
कपडे वो तो होंगे साफ़
खेला जो चोरी का खेल
हो जाएगी हमको जेल
फिर तुम ऐसी बात न करना
पुलिस बुला लूँगा अब वरना ।
दौडा गधा सुन उल्टे पैर
सोचा मेरी होगी न खैर ।
9 . अब बंदर की दुकान पर आया गधा और बंदर को खुश रहने का आशीर्वाद देकर बोला:-
बंदर भाई, बंदर भाई अगर तुम मेरे साथ हाथ मिला लो तो अपनी यह दुकान खूब चलेगी।
हाँ, हाँ गधे भाई! पर कैसे? ( बंदर बोला )
देखो, मैं रोज धोबी घाट पर जाऊँगा और कपड़े चुराकर ले आया करुँगा। तुम उन कपड़ों को बेचकर पैसे कमा लेना और बदले में मुझे खाने के लिए चारा दे देना।
बंदर तो गधे की बात सुनकर डर गया और बोला- गधे भाई तुम मुझे तो माफ़ ही करो। अगर चोरी पकड़ी गई तो हम दोनों को जेल की हवा खानी पड़ेगी। मेरे सामने फिर कभी ऐसी बात की तो मैं पुलिस बुला लूँगा। पुलिस का नाम सुनते ही गधा वहां से ऐसा रफ़ू-चक्कर हुआ कि फिर पीछे मुडकर भी नहीं देखा।

दसवाँ भाग

05 जुलाई 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में) - 8

सातवें भाग से आगे....

8. सुनकर सांप भी दौडा आया
सामने आकर फ़न फ़ैलाया
पहले उसने भरी फुँकार
दे दो मुझको चूहे चार
बदले में ले लो जहर
बेचना उसको जाके शहर
डर गया बंदर मन ही मन
खतरे में जो पड़ गया जीवन
बोला क्षमा करो हे नाग
आए तुम यही उत्तम भाग
कीमत तुझसे मैं न लूंगा
चूहों संग मेंढक भी दूंगा
पर करना होगा इंतजार
खाली है चूहों का जार
खुद ही शहर को जाऊंगा
चूहे लेकर आऊंगा
अब तुम जाकर करो आराम
नहीं लूंगा कुछ तुमसे दाम

8. बंदर की दुकान की चर्चा सुनकर सांप भी आया और अपना फ़न फैला फुँकार कर बोला:-
मुझे अभी चार चूहे दे दो, बदले में मै तुम्हें अपना जहर दे दूंगा। तुम उसे शहर में जाकर बेच देना और पैसे कमा लेना।

सांप को देखकर बंदर तो मन ही मन डर गया। उसे आपनी जान पर खतरा मंडराता दिखा और हाथ जोड कर सांप से बोला:-
हे नाग देवता! मुझे क्षमा करो परन्तु मैं आपसे कोई दाम नहीं लूंगा। आप मेरी दुकान पर आए, यही मेरा सौभाग्य है।
मैं आपको चूहों के संग में मेंढक भी दूंगा पर इसके लिए आपको थोड़ा इन्तजार करना पड़ेगा क्योंकि चूहों का जार अभी खाली हो चुका है। आपके लिए मैं स्वयं शहर को जाऊँगा और चूहे लाकर आप तक पहुँचा दूँगा। आप जाकर आराम करो, मैं आपसे उसके कोई दाम नहीं लूंगा।
इस तरह से बंदर ने सांप से पीछा छुड़ाया।

04 जुलाई 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में) - 7

छठवें भाग से आगे....

7. टर्र टर्र करता मेंढक आया
आकर बंदर को फ़रमाया
सुना है तेरी शॉप कमाल
मिलता है यहां सब माल
तपती गर्मी से हूं तंग
जल रहा मेरा अंग-अंग
दे दो जो मुझको बरसात
दूंगा फिर मैं सबको मात
सुनकर बंदर था हैरान
कैसे ग्राहक हैं महान
बोला मेघ बुलवाता हूँ
तेरे घर पहुँचाता हूँ।

7. अब टर्र-टर्र करता हुआ मेढक बंदर के पास आया और आते ही फ़रमाया :-
सुना है बंदर भाई, तुम्हारी दुकान बड़े कमाल की है, यहां पर हर चीज मिलती है।

हां हां मेढक भाई, बोलो तुम्हें क्या चाहिए।

देखों गरमी से मेरा बुरा हाल हो रहा है, मेरा पानी के बिना अंग-अंग जल रहा है। अगर तुम मुझे थोड़ी सी बरसात दे दो तो मैं सबको मात दे सकता हूँ।

सुनकर बंदर हैरान था और मन ही मन बुदबुदाया, अरे कैसे कैसे महान ग्राहक हैं पर मेढक से बोला:- मैं अभी बादल को बुलावा भेजता हूं, और वर्षा तुम्हारे घर तक पहुँचा दूंगा।

आठवाँ भाग

29 जून 2009

बंदर की दुकान-6

पाँचवें भाग से आगे....

6. ढोल उठाकर भालू आया
ता ता थैया नाच दिखाया
बोला क्या मिलता है मदारी
घूमूँ जिस संग दुनिया सारी
रियलटी शो में जाऊँगा
सबको नाच नचाऊँगा
दुनिया को दिखलाऊँगा
पैसा खूब कमाऊँगा
मुझे मदारी का बस चाव
बोलो मिलता है क्या भाव
एजेण्ट को अभी फोन करूँगा
तेरा चाव भी पूरा करूँगा
घर जाकर करो इन्तजार
आएगा मदारी तेरे द्वार

6. अब बंदर मामा की दुकान पर गले में ढोल लटकाए भालू आया। आते ही उसने पहले तो ता ता थैया करके अपना नाच दिखाया और बंदर से बोला:-
भैया बंदर क्या तुम्हारे पास ऐसा मदारी मिलता है, जिसके संग मैं पूरी दुनिया में घूम-घाम कर अपना नाच दिखा सकूं। फिर मैं रियलटी शो में जाऊँगा और सबको नाच-नचा कर अपनी योग्यता पूरी दुनिया को दिखाऊंगा, पैसा भी खूब कमाऊंगा। बस मुझे एक मदारी दे दो और हां उसका मोल भी बता दो।

बंदर अब अनमने मन से बिना उसकी तरफ़ देखे ही बोला :-
अभी अपने एजेण्ट को फ़ोन लगाता हूँ, मैं तुम्हारा चाव भी अवश्य पूरा करूँगा। तुम घर जाकर मदारी के पहुँचने का इन्तजार करो।

सातवाँ भाग॰॰॰

28 जून 2009

बंदर की दुकान - 5

चौथे भाग से आगे....

5.उडता-उडता कौवा आया
कांव-कांव का शोर मचाया
दुकान को देखने के बहाने
लगा वो आस-पास मंडराने
बोला फिर दो एक ट्री
एक के साथ में एक फ़्री
उस पर घर बनाऊंगा
आराम से फिर रह पाऊंगा
गाऊंगा बैठ के मजे से गाना
गाना सुनने तुम भी आना
क्रोध से हो गया बंदर लाल
पर आया उसको ख्याल
बोला वो लगवा दूंगा
घर तेरा बनवा दूंगा
लगेंगे पर इसमें कुछ दिन
देखो तुम न होना खिन्न
ज्यों ही बन जाएगा घर
कर दूंगा मैं तुम्हें खबर

5. अब उडता-उडता कौआ आया और कांव-कांव करके शोर मचाने लगा। सबसे पहले तो वह दुकान को देखने के बहाने इधर-उधर कांव-कांव करता हुआ दुकान के ऊपर मंडराने लगा। फिर आकर बोला:-
बंदर भैया, मुझे एक ट्री दे दो, देखो मुझे पता है यह एक के साथ एक फ़्री मिलता है। उस पर मैं अपना घर बनाऊंगा और फिर मजे से बैठकर गाना गाऊंगा। तुम भी मेरा गाना सुनने के लिए जरूर आना।
यह सुनकर बंदर तो गुस्से से लाल-पीला होने लगा लेकिन फ़िर अपने गुस्से को दबाते हुए बोला:-
कौए भैया मैं तुम्हें ऐसा ही पेड़ मंगवा दूंगा और इतना ही नहीं उस पर तुम्हारा घर भी बनवा कर दूंगा। पर देखो इस काम में तो कुछ दिन का समय लगेगा और तुम नाराज़ नहीं होना। जैसे ही तुम्हारा घर बन जाएगा मैं तुम्हें इत्तला कर दूंगा।

छठवाँ भाग

27 जून 2009

बंदर की दुकान-4

तीसरे भाग से आगे....

4. अब थोडी देर में बंदर मामा की दुकान पर भौं-भौं करता हुआ कुत्ता आ पहुंचा और आते ही:-

थोडी देर में कुत्ता आया
भौं भौं करके कह सुनाया
ऐसी बिल्ली का क्या रेट
जिससे भर जाए मेरा पेट
दे दो मुझको ताजी-ताजी
बनाऊंगा बिल्ली की भाजी
देखो देना बिल्ली मोटी
साथ में दे देना दो रोटी
सुनकर बंदर हुआ अवाक्
और कुत्ते से बोला तपाक
ऐसी बिल्ली दूंगा तुझको
याद करेगा हर पल मुझको
आर्डर बुक अब कर लेता हूं
कल तक तेरे घर देता हूं
ऐसे कुत्ते को टरकाया
मन ही मन क्रोध भी आया

बोलो बंदर भाई, बिल्ली का क्या रेट है ?
देखो, मुझे एक ताजी-ताजी मोटी-मोटी बिल्ली और साथ में दो रोटी भी दे दो। आज मैं बिल्ली की भाजी बनाऊंगा, जिसे खाकर मेरा पेट भर जाए।
अब बंदर को बहुत गुस्सा आने लगा, लेकिन फ़िर कुत्ते से बोला :-
कुत्ते भाई, मैं तुम्हें ऐसी बिल्ली दूंगा कि तुम उसे खाकर मुझे सदा याद रखोगे। मैं अभी तुम्हारा आर्डर बुक कर लेता हूँ और कल तक तुम्हें दे दूंगा। यूं बंदर मामा नें कुत्ते को टरका दिया।

पाँचवाँ भाग

26 जून 2009

बंदर की दुकान-3

दूसरे भाग से आगे....

3. चूहा गया तो बिल्ली आई
राम-राम आकर बुलाई
चूहे का बोलो क्या मोल
दो किलो मुझको दो तोल
ताजे-ताजे मोटे-मोटे
नहीं चाहिएं मुझे चूहे छोटे
गुस्सा बंदर को अब आया
पर मन ही मन में दबाया
बोला बंदर बिल्ली बहना
माने जो तू मेरा कहना
चूहे तुम्हें मंगवा दूंगा
घर तेरे भिजवा दूंगा
बिल्ली को यूं दे विदाई
किसी तरह से जान छुड़ाई ।

3. चूहा गया तो इतने में बिल्ली दुकान पर आ पहुँची और :-
राम राम बंदर भैया
राम राम बिल्ली बहना
क्या तुम्हारे पास मोटे-मोटे, ताजे- ताजे चूहे हैं?
चूहों का भाव क्या है? और मुझे दो किलो तोल कर दे दो। देखना चूहे छोटे नहीं होने चाहिएं।
बिल्ली की बात सुनकर बंदर को थोडा गुस्सा आया पर अपने गुस्से पर काबू पाते हुए बोला:-
बिल्ली बहना अगर तुम मेरी बात मानों तो अपने घर जाकर आराम करों और मैं चूहे मंगवा कर तुम्हारे घर पर ही भिजवा दूंगा। ऐसा कहकर बंदर मामा नें बिल्ली मौसी को घर भेज दिया।

(ज़ारी॰॰॰॰॰

24 जून 2009

बंदर की दुकान ( बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में ) -1

बच्चो,
आज से मैं तुमलोगों को एक उपन्यास पढ़वाने जा रही हूँ, जो पद्य और गद्य दोनों में होगी। रोज़ एक-एक भाग सुनाऊँगी। आज पढ़ो पहला भाग-

1.बंदर एक शहर को आया
बंदरिया को खूब घुमाया
देखी रेल गाड़ी और कार
घूमा पार्क और बाज़ार
घूमता एक दुकान पे आया
देख के उसका मन ललचाया
देखा होती खूब कमाई
बंदर ने योजना बनाई
खोलेगा जंगल में दुकान
ले जाएगा कुछ सामान
करेगा वो भी खूब कमाई
जो उसकी मेहनत रंग लाई
बन जाएगा वो भी अमीर
खाएगा हलवा पूरी खीर
पास में उसके थे कुछ पैसे
जोड़े थे जो जैसे-तैसे
खरीद लिया उसने सामान
खोली जंगल में दुकान
ऊंचे एक पेड़ के ऊपर
लगी दुकान और बैठा बंदर
सजी देख बंदर की दुकान
ग्राहक आने लगे महान

१. एक बार एक बंदर बंदरिया के साथ शहर में घूमने के लिए आया। शहर में घूम-घाम कर उसे बड़ा मजा आया। शहर में उसने रेलगाड़ी और कई कारें घूमती देखीं। यह देख बंदर-बंदरिया बहुत खुश हुए। घूमते घूमते वे दोनों बाज़ार में पहुंचे और एक दुकान पर आए। दुकान पर उन्होंने बहुत से ग्राहक देखे और देखा कि दुकान के मालिक को कितनी कमाई हो रही है। यह सब देख बंदर का मन लालच से भर गया और उसने भी एक योजना बनाई कि अगर वह भी जंगल में जाकर दुकान खोलेगा और मेहनत करेगा तो उसे भी खूब कमाई होगी और फिर वह अच्छे-अच्छे पकवान खाएगा । बंदर के पास जैसे-तैसे जोड़े हुए कुछ पैसे थे । उसने उन पैसों का सामान खरीदा और जंगल में आकर एक पेड़ के ऊपर दुकान खोल ली। बंदर की दुकान की चर्चा पूरे जंगल में जंगल की आग की तरह फैल गई। मामा की दुकान खुली देखकर उसके पास भी दूर-दूर से जंगली ग्राहक आने लगे।

(जारी..............

पढ़ने वाले भैय्या, अँकल जी और आँटी जी,
आप सब को नन्हें मन का नमस्ते.. प्रणाम.. सत श्री अकाल !
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प्यारे बच्चो , आपको और सभी भारतवासियों को आजादी की हार्दिक बधाई और शुभ-काम्नायें । स्वतंत्रता दिवस पर पढिए देश भक्ति की रचनाएं यहां ......

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