नमस्कार बच्चो आज की यह कविता आपके लिए भेजी है निखिल कुमार झा जी नें । आप भी देखिए जादुगर का जादु और बताना जरूर कि कविता का जादु कैसा लगा । मुझे तो पधकर बहुत मजा आया ।
जादूगर चाचा
सुनो-सुनो-सुनो.............
जादूगर इक गांव में आया ।
टिम टिम टिम टिम, काले-पीले ,
हरे-बैंगनी, और कुछ नीले।
अपने झोले में वो भरकर ,
अजब अनूठी दुनिया लाया ।
छोटू ने आवाज लगाई,
इतने दिन तुम कहाँ थे भाई ?
हम बच्चों को छोड़ अकेला,
क्यों न याद हमारी आई ?
प्यारे बच्चों, नन्ही गुडिया
लाया हूँ जादू की पुडिया
ताजमहल को यहां बुलाऊं
आओ तुम्हें कुछ नया दिखाऊं
ये दिल्ली का लाल किला है,
लाल रंग से यह धुला है
कलकत्ता की शान दिखाऊं
या लखनऊ तुम्हें ले जाऊं ,
और ये है पंजाब की जान,
आओ चलो अब राजस्थान ।
काशमीर से कन्याकुमारी
घूम लो चाहे दुनिया सारी
पर्वत नदियां या फ़िर अम्बर
या ले जाऊं चन्दा पर
टिम टिम करते देखो तारे
लगते हैं ये कितने प्यारे
देखो मछली रंग-बिरंगी
ये देखो झूला सतरंगी
वो देखो भालु और बन्दर
मगरमच्छ पानी के अन्दर
ये देखो जंगल का शेर
हो गई है अब मुझको देर
अब चलुं फ़िर से आऊंगा
नया नया कुछ ले आऊंगा
तुम भी अपने घर को जाओ
जाकर मम्मी को बतलाओ
चाचा-चाचा कह बच्चों ने,
जादूगर को गले लगाया ।
बच्चों से ले विदा चला वो
जाने का अब समय है आया ।
नन्हा मन
बच्चों, बहुत खोजबीन के बाद, अचपन जी ने नन्हा मन पर उड़न तश्तरी उतारने में सफलता पाई ! देखा ? तो.. सी-बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया दो !
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22 जुलाई 2010
जादूगर चाचा
इनमें देखो :
निखिल कुमार झा,
बाल-कविता
23 जून 2010
SWEET POEM --श्वेता ढींगरा
नमस्कार बच्चो ,
आज आपको पढाएंगे आपकी श्वेता दीदी की एक Sweet poem!!!इसे पढकर आपके मुंह में पानी जरूर भर आएगा । मैनें तो मजे से रसगुल्ला खाया , आप भी अवश्य खाना और अकेले नहीं खाना , सबको खिलाना और मक्खियों को दूर भगाना ।
Sweet poem
आओ भई आओ,,क्यों भई क्यों
इक चीज़ मिलेगी,,,क्या भई क्या,,
क्या भई क्या,,,
रसगुल्ला,,,,,,,
दूर भगाओ,,,दूर भगाओ,,,,,
किसको जी,,,,,,,
गंदी-गंदी मक्खियां ,,,,,
छी,,छी,,छी,,,
श्वेता ढींगरा
आज आपको पढाएंगे आपकी श्वेता दीदी की एक Sweet poem!!!इसे पढकर आपके मुंह में पानी जरूर भर आएगा । मैनें तो मजे से रसगुल्ला खाया , आप भी अवश्य खाना और अकेले नहीं खाना , सबको खिलाना और मक्खियों को दूर भगाना ।
Sweet poem
आओ भई आओ,,क्यों भई क्यों
इक चीज़ मिलेगी,,,क्या भई क्या,,
क्या भई क्या,,,
रसगुल्ला,,,,,,,
दूर भगाओ,,,दूर भगाओ,,,,,
किसको जी,,,,,,,
गंदी-गंदी मक्खियां ,,,,,
छी,,छी,,छी,,,
श्वेता ढींगरा
इनमें देखो :
बाल-कविता,
श्वेता ढींगरा
21 जून 2010
पापा मेरे प्यारे पापा- नन्ही-मुन्नी साक्षी
प्यारे बच्चो , आज की प्यारी सी कविता फ़ादर्स डे पर अपने प्यारे पापा के लिए भेजी है नन्ही-मुन्नी साक्षी नें । साक्षी दिल्ली शाहदरा की रहने वाली बहुत ही होनहार बच्चे है और छटी कक्षा में पढ्ती है । आप भी पढिए प्यारी-प्यारी साक्षी नें क्या लिखा है अपने पापा के लिए------
पापा मेरे प्यारे पापा,
सब दुनिया से न्यारे पापा!
पढ़ने में मेरी मदद करके,
कक्षा में अव्वल करायें पापा!
जब मम्मी से डांट पड़ तो,
डांट से हमें बचाएँ पापा!
तरह-तरह के खेल खेलकर,
हमारा मन बहलायें पापा!
जब भी कंही पे जाएँ पापा,
हमें उदास कर जाएँ पापा!
पर जब घर पर वापिस आएं ,
ढेरों गिफ़्ट लाएं पापा!
कुदरत का दस्तूर निराला,
सब बच्चों को भायें पापा!
हर पल ढेरों खुशियाँ देकर,
हमारे मन पर छायें पापा!
सच कहते हैं आपके जैसा
जग में ना है कोई पापा!
पापा मेरे प्यारे पापा,
सब दुनिया से न्यारे पापा!
पढ़ने में मेरी मदद करके,
कक्षा में अव्वल करायें पापा!
जब मम्मी से डांट पड़ तो,
डांट से हमें बचाएँ पापा!
तरह-तरह के खेल खेलकर,
हमारा मन बहलायें पापा!
जब भी कंही पे जाएँ पापा,
हमें उदास कर जाएँ पापा!
पर जब घर पर वापिस आएं ,
ढेरों गिफ़्ट लाएं पापा!
कुदरत का दस्तूर निराला,
सब बच्चों को भायें पापा!
हर पल ढेरों खुशियाँ देकर,
हमारे मन पर छायें पापा!
सच कहते हैं आपके जैसा
जग में ना है कोई पापा!
20 जून 2010
कितने तुम अच्छे पापा
पापा कितने सच्चे तुम
हो क्यों इतने अच्छे तुम ?
कभी मैं गुस्सा हो जाऊं
प्यार से मुझे मनाते तुम
ढेरों खिलौने लाते हो
मुझ संग बच्चे बन जाते हो
जब भी कभी मैं गिर जाऊं
क्यों गुस्सा हो जाते हो ?
मेरी थोडी सी पीडा
तुम क्यों न सह पाते हो ?
अपने प्यारे हाथों से
मेरी पीडा सहलाते हो
मेरे लिए गाते गाना
कभी घोडा बन जाते हो ?
कभी घुमाने ले जाते
तो सच्चे दोस्त बन जाते
रखते मेरा कितना ध्यान
कितने मुझे पर हैं अरमान
तेरी आंखो के सपने
लगते हैं मुझको अपने
गुस्सा कभी दिखाते हो
उसमें भी प्यार जताते हो
ज्यों हो तुम बच्चे पापा
कितने तुम अच्छे पापा
हो क्यों इतने अच्छे तुम ?
कभी मैं गुस्सा हो जाऊं
प्यार से मुझे मनाते तुम
ढेरों खिलौने लाते हो
मुझ संग बच्चे बन जाते हो
जब भी कभी मैं गिर जाऊं
क्यों गुस्सा हो जाते हो ?
मेरी थोडी सी पीडा
तुम क्यों न सह पाते हो ?
अपने प्यारे हाथों से
मेरी पीडा सहलाते हो
मेरे लिए गाते गाना
कभी घोडा बन जाते हो ?
कभी घुमाने ले जाते
तो सच्चे दोस्त बन जाते
रखते मेरा कितना ध्यान
कितने मुझे पर हैं अरमान
तेरी आंखो के सपने
लगते हैं मुझको अपने
गुस्सा कभी दिखाते हो
उसमें भी प्यार जताते हो
ज्यों हो तुम बच्चे पापा
कितने तुम अच्छे पापा
इनमें देखो :
बाल-कविता,
सीमा सचदेव
16 जून 2010
सच्चा सपूत - baal-kavita
देश का प्रेम भरा हो जिसमें
देश-भक्त कहलाता है ,
जो भावों से भरा हुआ हो
देश भक्ति लिख पाता है ।
अपनी मां अपनी मिट्टी से
जिसका गहरा नाता हो
बलिदानी वीरों सम्मुख
जो नत-मस्तक हो जाता हो
अपने वतन लिए अपने
लिख-लिख कर भाव बहाता हो
कुर्बानी सुन-सुन जिसके
नयनों से गंगा बह जाए
अपनी मिट्टी की खुशबू से
जो जन दूर न रह पाए
जिसकी कलम वीर-गाथा में
स्वयंमेव लिखती जाए
पढ-सुनकर जिसको ह्रदय
भी भाव-विह्वल हो जाता है
वही सच्चा मां का सेवक
सच में सपूत कहलाता है
देश-भक्त कहलाता है ,
जो भावों से भरा हुआ हो
देश भक्ति लिख पाता है ।
अपनी मां अपनी मिट्टी से
जिसका गहरा नाता हो
बलिदानी वीरों सम्मुख
जो नत-मस्तक हो जाता हो
अपने वतन लिए अपने
लिख-लिख कर भाव बहाता हो
कुर्बानी सुन-सुन जिसके
नयनों से गंगा बह जाए
अपनी मिट्टी की खुशबू से
जो जन दूर न रह पाए
जिसकी कलम वीर-गाथा में
स्वयंमेव लिखती जाए
पढ-सुनकर जिसको ह्रदय
भी भाव-विह्वल हो जाता है
वही सच्चा मां का सेवक
सच में सपूत कहलाता है
इनमें देखो :
बाल-कविता,
सीमा सचदेव
04 जून 2010
दीदी तुम भी........महेश कुश्वंश
इनमें देखो :
बाल-कविता,
महेश कुश्वंश,
साक्षरता अभियान
28 अप्रैल 2010
पंख उड़ाती कहाँ चली- आकांक्षा यादव

तितली रानी,तितली रानी
पंख उड़ाती कहाँ चली
घूम रही हो गली-गली
अभी यहाँ थी,वहाँ चली.
काश हमारे भी पंख होते
संग तुम्हारे हम उड़ लेते
रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे
मन को भाते हैं ये सारे.
जब भी तुमको चाहें छूना
पास नहीं तुम आती हो
फूलों का रस लेकर
झट से क्यूँ उड़ जाती हो.
आकांक्षा यादव
इनमें देखो :
आकांक्षा यादव,
बाल-कविता
20 अप्रैल 2010
समीर लाल समीर ( उडन-तश्तरी) जी की बाल-कविता - चिड़िया!!!!!
नमस्कार बच्चो ,
उस दिन हमें अमर अंकल नें बताया कि उन्होंने नन्हामन पर उडन-तश्तरी उतारी है और हम सब उसमें बैठकर आसमान की सैर भी कर आए । अमर अंकल नें इतना तो बताया कि उन्हें इसमें बहुत मेहनत करनी पडी , अब यह समझ में आया कि उस उडन-तश्तरी को उतारने में इतनी मेहनत क्यों लगी ?
भई उसके साथ समीर अंकल जो उतर रहे थे वो भी अपने दोस्तों के साथ , अब इतनी भारी-भरकम ह्म्म्म्म.....इतनी बडी उडन तश्तरी को उतरने में समय तो लगेगा ही न............। अमर अंकल को धन्यवाद जिन्होंनें समीर अंकल की उडन-तश्तरी नन्हामन पर उतार ली । अब देखिए समीर अंकल के साथ प्यारे-प्यारे दोस्त क्या कर रहे हैं । चलो बच्चो आप खूब मजे लेना अंकल के साथ , तो हो जाए मस्ती नन्हे-मुन्नों के लिए। अब पढते हैं समीर अंकल की कविता.......
एक है चिड़िया-
चूं चूं करती
चूं चूं करती
चीं चीं करती
नाम है उसका बोलू
इस डंडी से उस डंडी पर
उड़ती फिरती
फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र
फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र
फिर दूजी चिड़िया भी आई
चूं चूं करती
चीं चीं करती
उड़ती फिरती
फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र
खुशी खुशी से बोल रही है
चूं चूं, चीं चीं
कूद कूद के खाना खाया
तब तक तीजा दोस्त भी आया
नाम जरा था अलग सा पाया
चिड़ियों ने यह जात न पाई
एक नहीं पूरे दो साल
इस झूले पर, उस झूले पर
हन हन हन हन
मिल मिल करके गाना गाता
चूं चूं, चीं चीं
चूं चूं, चीं चीं
बोलू, मोलू और खुशाल!!

भई उसके साथ समीर अंकल जो उतर रहे थे वो भी अपने दोस्तों के साथ , अब इतनी भारी-भरकम ह्म्म्म्म.....इतनी बडी उडन तश्तरी को उतरने में समय तो लगेगा ही न............। अमर अंकल को धन्यवाद जिन्होंनें समीर अंकल की उडन-तश्तरी नन्हामन पर उतार ली । अब देखिए समीर अंकल के साथ प्यारे-प्यारे दोस्त क्या कर रहे हैं । चलो बच्चो आप खूब मजे लेना अंकल के साथ , तो हो जाए मस्ती नन्हे-मुन्नों के लिए। अब पढते हैं समीर अंकल की कविता.......
एक है चिड़िया-
चूं चूं करती
चूं चूं करती
चीं चीं करती
नाम है उसका बोलू
इस डंडी से उस डंडी पर
उड़ती फिरती
फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र
फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र
फिर दूजी चिड़िया भी आई
चूं चूं करती
चीं चीं करती
उड़ती फिरती
फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र
फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र
नाम बताया मोलू
झूले में वो झूल रही है
मेरी यार बनोगी, बोलू?
चूं चूं, चीं चीं
दोनों ने यह गाना गाया
तब तक तीजा दोस्त भी आया
नाम जरा था अलग सा पाया
हिन्दु मुस्लिम सिख इसाई
जिसने पाला उसकी होती
उसी धर्म का बोझ ये ढोती
मुस्लिम के घर रह कर आई
एक नहीं पूरे दो साल
ऐसा ही तो नाम भी उसका
सबने कहा उसे खुशाल
वो भी झूला उस झूले पर
हन हन हन हन
घंटी वो भी खूब बजाता
ट्न टन टन टन
फिर सबके संग खाना खाता
चूं चूं, चीं चीं
चूं चूं, चीं चीं
तीनों सबको खुश रखते हैं
ठुमक ठुमक के वो चलते हैं
खुशी में होते सभी निहाल
हम भी मिलकर
गाना गाते
चूं चूं, चीं चीं
चूं चूं, चीं चीं
उड़ते जाते
फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र
फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र
-समीर लाल 'समीर'
जितने भी बच्चे पढेंगे , उन सबको समीर अंकल की तरफ़ से एक-एक मिल्की-बार । अपनी हाजिरी लगाना मत भूलिएगा ।
जितने भी बच्चे पढेंगे , उन सबको समीर अंकल की तरफ़ से एक-एक मिल्की-बार । अपनी हाजिरी लगाना मत भूलिएगा ।
इनमें देखो :
चिड़िया,
बाल-कविता,
समीर लाल समीर
14 अप्रैल 2010
सुनो सुनो सुनो....उडन-तश्तरी नन्हामन पर , समीर अंकल प्लीज़ बताएं......
नमस्कार बच्चो ,
आज से आप देखेंगे नन्हामन पर अपना एक नया दोस्त--उडन तश्तरी । अमर अंकल नें बडी मुश्किल से मनाया है ....दो दिन की सख्त मेहनत के बाद आखिर उन्हें सफ़लता मिल ही गई , उडन-तश्तरी जी मान ही गए और पधारे नन्हामन पर और आते ही हमें आसमान की सैर भी करवा लाए । हमें बहुत मजा आया - थैंक्यू उडन-तश्तरी आखिर तुम हमारी दोस्त बन ही गई , अब हमारे पास ही रहना । तो हम बताएं उडन-तश्तरी में बैठकर हमने क्या-क्या देखा.....
आसमान से नीचे उतरी
हमनें जब आवाज़ लगाई
तो वो पास हमारे आई
बैठके हमने इसके अंदर
देखे नभ,भू और समंदर
उडते पक्षी प्यारे-प्यारे
मजा आ गया इसको पाकर
रख दिया नहामन पर लाकर
होकर रहेगी अब ये हमारी
उड्न तश्तरी प्यारी-प्यारी
ऊपर देखिए नन्हामन का हैडिंग , जिसमें अमर जी नें बडी मेहनत के बाद उडन-तश्तरी को उतारा है । मुझे तो देखकर बहुत मजा आया । आप बताएं आपको कैसी लगी ?
इनमें देखो :
बाल-कविता,
सीमा सचदेव
09 अप्रैल 2010
थैंक्यू अंकल अमर ( कविता )
नमस्कार ,
नन्हामन की नई सजावट और परिकल्पना देखकर किसी की भी पहली आवाज निकलेगी....वा......ओ.ओ.ओ.ओ.ओ.ओ.ओ.ओ । और इसे सजाने संवारने का पूरा श्रेय है डा. अमर जी को , जिसके लिए हम उनके तहे दिल से आभारी हैं । आज की कविता नन्हे-मुन्नों की तरफ़ से अमर अंकल के लिए

थैंक्यू अंकल नन्हामन क्या
खूब सजाया आपने
नन्हामन नन्ही बगिया को
स्वर्ग बनाया आपने
कितना सुन्दर रूप दिया है
कितने सुन्दर रंग भरे
देखके इसकी मोहकता
मन यहीं पे बस जाने को करे
यूंही इसे सजाते रहना
बच्चों के अंकल अमर
तभी फ़ले-फ़ूलेगा आगे
नन्हामन प्यारा सा घर
हुआ यह कि हमारे चार साल के लाडले शुभम नें जैसे ही नन्हामन देखा तो अनायास ही बोल उठा वाआआआओ ओ ओ ओ ओ और पूछने लगा
मम्मी इसको इतना सुन्दर किसने बनाया
मैने कहा -अमर अंकल नें
तो अंकल को थैंक्यू बोला
नहीं
सेअ सोरी...मैं आगे से थैंक्यू बोलूंगी , अब अंकल को थैंक्यू बोलो
तो बस बन गई हमारी कविता -अमर अंकल के लिए
नन्हामन की नई सजावट और परिकल्पना देखकर किसी की भी पहली आवाज निकलेगी....वा......ओ.ओ.ओ.ओ.ओ.ओ.ओ.ओ । और इसे सजाने संवारने का पूरा श्रेय है डा. अमर जी को , जिसके लिए हम उनके तहे दिल से आभारी हैं । आज की कविता नन्हे-मुन्नों की तरफ़ से अमर अंकल के लिए

थैंक्यू अंकल नन्हामन क्या
खूब सजाया आपने
नन्हामन नन्ही बगिया को
स्वर्ग बनाया आपने
कितना सुन्दर रूप दिया है
कितने सुन्दर रंग भरे
देखके इसकी मोहकता
मन यहीं पे बस जाने को करे
यूंही इसे सजाते रहना
बच्चों के अंकल अमर
तभी फ़ले-फ़ूलेगा आगे
नन्हामन प्यारा सा घर
हुआ यह कि हमारे चार साल के लाडले शुभम नें जैसे ही नन्हामन देखा तो अनायास ही बोल उठा वाआआआओ ओ ओ ओ ओ और पूछने लगा
मम्मी इसको इतना सुन्दर किसने बनाया
मैने कहा -अमर अंकल नें
तो अंकल को थैंक्यू बोला
नहीं
सेअ सोरी...मैं आगे से थैंक्यू बोलूंगी , अब अंकल को थैंक्यू बोलो
तो बस बन गई हमारी कविता -अमर अंकल के लिए
इनमें देखो :
बाल-कविता,
सीमा सचदेव
08 अप्रैल 2010
"‘नन्हा-तारा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
मैं अपनी मम्मी-पापा के,
नयनों का हूँ नन्हा-तारा।
मुझको लाकर देते हैं वो,
रंग-बिरंगा सा गुब्बारा।।
मुझे कार में बैठाकर,
वो रोज घुमाने जाते हैं।
पापा जी मेरी खातिर,
कुछ नये खिलौने लाते हैं।।
मैं जब चलता ठुमक-ठुमक,
वो फूले नही समाते हैं।
जग के स्वप्न सलोने,
उनकी आँखों में छा जाते हैं।।
ममता की मूरत मम्मी-जी,
पापा-जी प्यारे-प्यारे।
मेरे दादा-दादी जी भी,
हैं सारे जग से न्यारे।।
सपनों में सबके ही,
सुख-संसार समाया रहता है।
हँसने-मुस्काने वाला,
परिवार समाया रहता है।।
मुझको पाकर सबने पाली हैं,
नूतन अभिलाषाएँ।
क्या मैं पूरा कर कर पाऊँगा,
उनकी सारी आशाएँ।।
मुझको दो वरदान प्रभू!
मैं सबका ऊँचा नाम करूँ।
मानवता के लिए जगत में,
अच्छे-अच्छे काम करूँ।।
इनमें देखो :
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’,
बाल-कविता
06 अप्रैल 2010
बाल कविता: मेरी माता! संजीव 'सलिल'
मेरी मैया!, मेरी माता!!
किसने मुझको जन्म दिया है?
प्राणों से बढ़ प्यार किया है.
किसकी आँखों का मैं तारा?
किसने पल-पल मुझे जिया है?
किसने बरसों दूध पिलाया?
निर्बल से बलवान बनाया.
खुद का वत्स रखा भूखा पर-
मुझको भूखा नहीं सुलाया.
वह गौ माता!, मेरी माता!!
*
किसकी गोदी में मैं खेला?
किसने मेरा सब दुःख झेला?
गिरा-उठाया, लाड़ लड़ाया.
हाथ पकड़ चलना सिखलाया.
भारत माता!, मेरी माता!!
किसने मुझको बोल दिये हैं?
जीवन के पट खोल दिये हैं.
किसके बिन मैं रहता गूंगा?
शब्द मुझे अनमोल दिये हैं.
हिंदी माता!, मेरी माता!!
*
इनमें देखो :
आचार्य संजीव 'सलिल',
बाल-कविता,
मदर्स डे
मोर

काले काले बादल छाए ,
धडाधड शोर हैं मचाएँ ,
घनघोर घटाएँ हैं गाएँ ,
मौसम सुहाना है लाए ।
मोर को मौसम भाया रे ,
पंखों को फैलाया रे ,
मोरनी ने गीत गाया रे ,
घूमकर मोर नाचा रे ।
नीले , हरे सुनहरे पंख ,
देखकर बच्चे हुए दंग ,
कितने सुंदर पंख व नाच ,
मन ख़ुशी से नाचा आज ।
धडाधड शोर हैं मचाएँ ,
घनघोर घटाएँ हैं गाएँ ,
मौसम सुहाना है लाए ।
मोर को मौसम भाया रे ,
पंखों को फैलाया रे ,
मोरनी ने गीत गाया रे ,
घूमकर मोर नाचा रे ।
नीले , हरे सुनहरे पंख ,
देखकर बच्चे हुए दंग ,
कितने सुंदर पंख व नाच ,
मन ख़ुशी से नाचा आज ।
इनमें देखो :
बाल-कविता,
मंजु गुप्ता
31 मार्च 2010
काव्य रचना: मुस्कान --संजीव 'सलिल'
काव्य रचना:
मुस्कान
संजीव 'सलिल'
जिस चेहरे पर हो मुस्कान,
वह लगता हमको रस-खान..
अधर हँसें तो लगता है-
हैं रस-लीन किशन भगवान..
आँखें हँसती तो दिखते -
उनमें छिपे राम गुणवान..
उमा, रमा, शारदा लगें
रस-निधि कोई नहीं अनजान..
'सलिल' रस कलश है जीवन
सुख देकर बन जा इंसान..
*************************
मुस्कान
संजीव 'सलिल'
जिस चेहरे पर हो मुस्कान,
वह लगता हमको रस-खान..
अधर हँसें तो लगता है-
हैं रस-लीन किशन भगवान..
आँखें हँसती तो दिखते -
उनमें छिपे राम गुणवान..
उमा, रमा, शारदा लगें
रस-निधि कोई नहीं अनजान..
'सलिल' रस कलश है जीवन
सुख देकर बन जा इंसान..
*************************
इनमें देखो :
आचार्य संजीव 'सलिल',
बाल-कविता
बिल्ली बोली म्याउं म्याउं
इस कविता लिखने का श्रेय मैं देना चाहुंगी राजेशा जी को जिन्होंने प्रथम चार पंक्तियां लिखकर मुझसे कविता पूरी करने को कहा और मैनें एक प्रयास किया , प्रयास कितना सफ़ल है यह आप लोग ही बताएंगे ।
बिल्ली बोली म्याउं म्याउं
दूध पियुं या चूहे खाउं
व्रत रखूं या संडे मनाउं
या डॉगी को खूब छकाउं
या फ़िर बन जाऊं मैं डांसर
उंगलियों पर नचाऊं बंदर
देखे सपने बहुत हसीन
पांव पडें न पर ज़मीन
बिल्ली बोली म्याउं म्याउं
दूध पियुं या चूहे खाउं
व्रत रखूं या संडे मनाउं
या डॉगी को खूब छकाउं
गंगा में या जा नहाऊं
नहीं तो राजनीति अपनाऊं
बिल्लियों की आवाज़ उठाऊं
या फ़िर जंगल में बस जाऊं
किसी के घर पर कभी न आऊं
नहीं तो राजनीति अपनाऊं
बिल्लियों की आवाज़ उठाऊं
या फ़िर जंगल में बस जाऊं
किसी के घर पर कभी न आऊं
या फ़िर माया नगरी जाऊं
फ़िल्मों में जा नाम कमाऊं
या फ़िर खोलुं अस्पताल
करूं मैं चूहों का इलाज़
फ़िल्मों में जा नाम कमाऊं
या फ़िर खोलुं अस्पताल
करूं मैं चूहों का इलाज़
या कुत्ते के बच्चे पालुं
काम से पैसा खूब कमा लूं
या फ़िर शेर को जा पढाऊं
पेड के ऊपर चढना सिखाऊं
काम से पैसा खूब कमा लूं
या फ़िर शेर को जा पढाऊं
पेड के ऊपर चढना सिखाऊं
या फ़िर बन जाऊं मैं डांसर
उंगलियों पर नचाऊं बंदर
देखे सपने बहुत हसीन
पांव पडें न पर ज़मीन
इनमें देखो :
बाल-कविता,
बिल्ली बोली म्याउं म्याउं,
सीमा सचदेव
29 मार्च 2010
बिल्ली बोली म्याउं म्याउं
इस कविता लिखने का श्रेय मैं देना चाहुंगी राजेशा जी को जिन्होंने प्रथम चार पंक्तियां लिखकर मुझसे कविता पूरी करने को कहा और मैनें एक प्रयास किया , प्रयास कितना सफ़ल है यह आप लोग ही बताएंगे ।
बिल्ली बोली म्याउं म्याउं
दूध पियुं या चूहे खाउं
व्रत रखूं या संडे मनाउं
या डॉगी को खूब छकाउं
या फ़िर बन जाऊं मैं डांसर
उंगलियों पर नचाऊं बंदर
देखे सपने बहुत हसीन
पांव पडें न पर ज़मीन
बिल्ली बोली म्याउं म्याउं
दूध पियुं या चूहे खाउं
व्रत रखूं या संडे मनाउं
या डॉगी को खूब छकाउं
गंगा में या जा नहाऊं
नहीं तो राजनीति अपनाऊं
बिल्लियों की आवाज़ उठाऊं
या फ़िर जंगल में बस जाऊं
किसी के घर पर कभी न आऊं
नहीं तो राजनीति अपनाऊं
बिल्लियों की आवाज़ उठाऊं
या फ़िर जंगल में बस जाऊं
किसी के घर पर कभी न आऊं
या फ़िर माया नगरी जाऊं
फ़िल्मों में जा नाम कमाऊं
या फ़िर खोलुं अस्पताल
करूं मैं चूहों का इलाज़
फ़िल्मों में जा नाम कमाऊं
या फ़िर खोलुं अस्पताल
करूं मैं चूहों का इलाज़
या कुत्ते के बच्चे पालुं
काम से पैसा खूब कमा लूं
या फ़िर शेर को जा पढाऊं
पेड के ऊपर चढना सिखाऊं
काम से पैसा खूब कमा लूं
या फ़िर शेर को जा पढाऊं
पेड के ऊपर चढना सिखाऊं
या फ़िर बन जाऊं मैं डांसर
उंगलियों पर नचाऊं बंदर
देखे सपने बहुत हसीन
पांव पडें न पर ज़मीन
इनमें देखो :
बाल-कविता,
बिल्ली बोली म्याउं म्याउं,
सीमा सचदेव
28 मार्च 2010
बंदर गया स्कूल
नटखट बंदर गया स्कूल
वहाँ गया पहाड़ा भूल।
हाथी दादा बने थे टीचर
गुस्से में दिया दो रूल।
नटखट बन्दर हुआ उदास
अपने को समझा था खास।
हाथी दादा ने समझाया
सारा पहाड़ा याद कराया।
कक्षा में तुम मन से आना
पढ़ाई से न जी चुराना।
मेहनत सदैव जमकर करना
आगे ही तुम बढ़ते रहना।
आकांक्षा यादव
वहाँ गया पहाड़ा भूल।
हाथी दादा बने थे टीचर
गुस्से में दिया दो रूल।
नटखट बन्दर हुआ उदास
अपने को समझा था खास।
हाथी दादा ने समझाया
सारा पहाड़ा याद कराया।
कक्षा में तुम मन से आना
पढ़ाई से न जी चुराना।
मेहनत सदैव जमकर करना
आगे ही तुम बढ़ते रहना।
आकांक्षा यादव
इनमें देखो :
आकांक्षा यादव,
बाल-कविता
27 मार्च 2010
गधे नें बसता एक लिया

गधे नें बसता एक लिया
विद्यालय में पहुंच गया
ए.बी.सी. जब बोली मिस
लिया वहां से गधा खिसक
विद्यालय में पहुंच गया
ए.बी.सी. जब बोली मिस
लिया वहां से गधा खिसक
मैडम को भी हो गया धोखा
पढकर घोडा शहर को आया
कुछ तो अपना नाम कमाया
पढकर घोडा शहर को आया
कुछ तो अपना नाम कमाया
किंतु अनपढ रहा गधा
ढोता रहता भार सदा
ढोता रहता भार सदा
गधे नें सीख लिया कंप्यूटर
इनमें देखो :
गधे नें बसता एक लिया,
बाल-कविता,
सीमा सचदेव
26 मार्च 2010
बाघ बडा फ़ुर्तीला है
नमस्कार बच्चो ,
आज आपको जानकारी देंगे कविता के माध्यम से भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ के बारे में ।

बाघ बडा फ़ुर्तीला है
रंग इसका पीला है
बडे तेज हैं इसके दांत
दे जाता दुश्मन को मात
धारीदार है इसका तन
घर इसका है प्यारा वन
चुस्त तेज है इसकी चाल
पल में दुश्मन करे हलाल
घास नहीं ये चरता है
न ये किसी से डरता है
पशुओं में सबसे सुन्दर
काली पीली धार तन पर
दुश्मन जब कोई ललकारे
टूट पडे ये बिना विचारे
जब ये गुस्से में आए
दुश्मन सर न उठा पाए
अपनी रक्षा करे स्वयं
चेतन रहे बाघ हर दम
साहसी सुन्दर और चंचल
भागे जब पैरों के बल
पकड में फ़िर न ये आता
पल में दूर भाग जाता
राष्ट्रीय पशु का मिला सम्मान
भारत का यह पशु महान
मोहक चतुर रंगीला है
बाघ बडा फ़ुर्तीला है
बाघ बचाओ अभियान में अपना बहुमूल्य सहयोग दें-------सीमा सचदेव
आज आपको जानकारी देंगे कविता के माध्यम से भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ के बारे में ।

बाघ बडा फ़ुर्तीला है
रंग इसका पीला है
बडे तेज हैं इसके दांत
दे जाता दुश्मन को मात
धारीदार है इसका तन
घर इसका है प्यारा वन
चुस्त तेज है इसकी चाल
पल में दुश्मन करे हलाल
घास नहीं ये चरता है
न ये किसी से डरता है
पशुओं में सबसे सुन्दर
काली पीली धार तन पर
दुश्मन जब कोई ललकारे
टूट पडे ये बिना विचारे
जब ये गुस्से में आए
दुश्मन सर न उठा पाए
अपनी रक्षा करे स्वयं
चेतन रहे बाघ हर दम
साहसी सुन्दर और चंचल
भागे जब पैरों के बल
पकड में फ़िर न ये आता
पल में दूर भाग जाता
राष्ट्रीय पशु का मिला सम्मान
भारत का यह पशु महान
मोहक चतुर रंगीला है
बाघ बडा फ़ुर्तीला है
बाघ बचाओ अभियान में अपना बहुमूल्य सहयोग दें-------सीमा सचदेव
इनमें देखो :
जीव बचाओ अभियान,
बाघ बचाओ अभियान,
बाघ बडा फ़ुर्तीला है,
बाल-कविता,
सीमा सचदेव
25 मार्च 2010
कम्प्युटर का युग
कम्प्युटर का युग है आया,
बड़े बड़े बदलाव है लाया,
इसने तो बदली है दुनिया,
अपना रंग है खूब जमाया।
नाना नानी दादा दादी,
को अपनों से दूर भगाया,
परी लोक और परी कथाओं,
से बच्चों को दूर भगाया।
पहले जहां होता था
किताबों का कलेक्शन,
वहां पर अब हरदम रहता,
देखो नेट का कनेक्शन।
अब तो आंखें घूमा करतीं,
कम्प्यूटर मोबाइल पर,
कौन सा कार्टून कहां है आया,
किस चैनल किस टाइम पर।
हर दिशा के ज्ञान का होना,
पंख फ़ैलाओ नीले नभ पर,
पर जमीन से जुड़े ही रहना।
000
इनमें देखो :
कम्पुटर का युग,
कवियत्री पूनम,
झूमें नाचें गायें,
बाल-कविता,
बालगीत
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