प्यारे बच्चो , आपने अकसर यह शब्द अपने बडों के मुख से सुने होंगे पर क्या आप

यह शब्द किसके कहे हुए हैं और इनका अर्थ क्या है ...?
चलो आज मै आपको इनके बारे में बताती हूँ यह शब्द श्री गुरु रविदास जी के है आज गुरु रविदास जी ज्यंती भी है
उनका जन्म हर वर्ष माघ माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है आप का जन्म पंद्रहवीं शताब्दी में हुआ आपको पता है ...गुरु रविदास जी जाति से चमार थे और जूते बनाने का कार्य करते थे लेकिन फिर भी उन्होंने अपने उच्च कर्म से जाति-पाति के भेद-भाव को मिटाने , भाईचारे और प्रेम-प्यार से रहने का संदेश दिया जिसकी आज के युग मे सर्वाधिक आवश्यकता है
आप धन से अवश्य गरीब थे लेकिन मन से उन जैसा धनी कोई विरला ही होता है गरीबी मे रहते हुए भी अपने सच्चे कर्म को ही उन्होंने प्राथमिकता दी लोग उनकी दीन-हीन हालत देखकर उन पर हँसते और बहुत लोगों ने तो उन्हें इस दीनता से निकालने के लिए धन देने का प्रयास भी किया
लेकिन गुरु जी ने कभी उसको स्वीकार नहीं किया आप बाहरी आडम्बरों से दूर रहते हुए अकसर कहते थे कि :-
मन चंगा तो कठौती मे गंगा
कि अगर मन साफ है तो उस कठैती मे भरा हुआ पानी भी गंगा जल सदृश्य है जिसमें वह जूतों के लिए चमडा भिगो कर रखते हैं
आओ मै आपको उनके जीवन से जुडी कुछ और बातें बताती हूँ
1 कहते है एक बार कुछ साधू जो कि हरिद्वार जा रहे थे ,वो रास्ते मे गुरु रविदास जी के पास आए तो गुरु जी ने उन्हें एक टका ( एक पैसा )
गंगा मैया की भेंट हेतु दिया जब वो हरिद्वार पहुँचे और गंगा जी में अपनी भेंट देने के उपरान्त गुरु जी का दिया टका गंगा मे भेंट करने लगे तो गंगा मैया ने
हाथ निकाल कर अपने हाथ मे वह भेंट स्वीकार की
2 एक और कथा के अनुसार मीराबाई जो श्री कृष्ण जी की अनन्य भक्त थी ने गुरु रविदास जी को अपना गुरु माना था और गुरु जी की दीन हालत देखकर उन्होंने
गुरु जी को बहुमूल्य हीरा कोहेनूर हीरा ( जो आजकल इण्गलैंड की महारानी के ताज की शोभा है ) भेंट मे दिया , पर गुरु जी ने उसे स्वीकार नहीं किया तो मीरा बाई ने
वह हीरा उनकी झोंपडी में टांग दिया कि जब गुरु जी को आवश्यकता होगी तो उसको बेचकर धन हासिल कर लेन्गे लेकिन काफी समय बाद जब मीरा बाई जी दोबारा गुरु जी के
दर्शनार्थ आईं तो उन्होंने देखा कि गुरु जी तो अभी भी वही जीवन जी रहे हैं मीरा बाई के पूछने पर गुरु जी ने कहा कि उनके पास ईश्वर के नाम का असली हीरा है तो उशें इन हीरों की क्या आवश्यक्ता
3.एक और दन्त कथा के अनुसार एक बार किसी ने गुरु जी को पारस पत्थर भेंट किया जिससे छूकर लोहा भी सोना बन जाता है गुरु जी ने उसे अपने झोंपडी के कोने मे टांग दिया
जब गुरु जी के रहन-सहन में कोई परिवर्तन नहीं आया तो उन्होंने गुरु जी से पूछा कि वह पारस पत्थर का उपयोग क्यों नहीं करते तो भी उन्होंने यही कहा कि ईश्वर नाम जैसा अमूल्य रत्न
के सम्मुख यह पत्थर कुछ भी नहीं
4.कहते हैं गुरु जी के जीवन काल में उनकी प्रसिद्धी दूर्-दूर तक हो गई थी और यह देख कर ब्राहमण उनसे द्वेष भाव रखते थे एक बार उन्होंने गुरु जी के विश्वास की परीक्षा लेने और उन्हें नीचा दिकाने के उद्देश्य

5.एक और कथा के अनुसार एक बार गुरु जी की महिमा सुन चितौड की महारानी ने उन्हें बुलाया जहां उन्होंने बहुत सारे ब्राहम्णों को भी खाने पर बुलाया हुआ था गुरु जी जब वहां पहुँचे तो ब्राहम्णों ने गुरु जी के साथ बैठकर भोजन करने से इन्कार कर दिया इस पर ब्राहम्णों को अलग पंक्ति में बैठाया गया ,लेकिन जब भोजन करने लगे तो उन्होंने देखा कि सभी कि बाजु मे गुरु रविदास जी बैठे हुए हैं तो ब्राहम्णों को अपनी गलती का अहसास हुआ
इस तरह गुरु जी ने जाति-पाति ऊँच-नीच के भेद-भाव
को मिटा प्रेम-प्यार से रहने का संदेश दिया
श्री गुरु रविदास ज्यंति की हार्दिक बधाई
कथा बहुत अच्छी और हमारे भी प्रभु सालिग राम हैं!
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चाँद, बादल और शाम
बहुत सुन्दर*********
जवाब देंहटाएंबहुत ही शिक्षाप्रद बात! बधाई ले लो जी
बहुत सुन्दर पोस्ट लिखी है।
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