परिणाम : बाल-रचना प्रतियोगिता - १
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"नन्हा मन" द्वारा आयोजित
बाल-रचना प्रतियोगिता - १ का परिणाम घोषित हो चुका है ।
प्रस्तुत है प्रतियोगिता की द्वितीय विजेता
रचना श्रीवास्तव
की कहानी
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अन्वी की सीख
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अन्वी हमेशा ऐसा ही करती थी । एक सामान निकाला, खेला और वहीं छोड़कर दूसरा निकाल लिया । इसी तरह खेल-खेलकर वह पूरे कमरे में सामान बिखरा देती । माँ को इस बात पर बहुत गुस्सा आता । अब अन्वी छोटी भी नहीं है । पूरे ७ साल की हो चुकी है । पर वो माँ की एक भी बात नहीं सुनती थी ।
माँ परेशान थी कि क्या करे । थक-हारकर माँ ने उसका कमरा साफ करना छोड़ दिया ।
दूसरे दिन स्कूल से आने के बाद अन्वी ने अपना होमवर्क किया और अपने रूम में खेलने गई । पर उसको कोई भी चीज़ नहीं मिल रही थी । अन्वी को तो आदत थी कि वो जब दोबारा खेलने जाती तो सब चीज़ें अपनी जगह पर मिलती थीं ।
लेकिन आज माँ ने कमरा ठीक क्यों नहीं किया ? - यह सोचकर अन्वी बहुत परेशान हो रही थी ।
"माँ, मुझे बार्बी की ड्रेस नहीं मिल रही है ।" - अन्वी ज़ोर से चिल्लाई ।
"वहीँ होगी ।" - माँ ने दूर से ही कह दिया, पर अन्वी की हेल्प करने के लिए नहीं गई ।
अन्वी ने फिर कहा - "माँ, मेरी पज़ल के दो पीस नहीं मिल रहे हैं ।"
पर माँ इस बार भी नहीं गई । अन्वी परेशान हो गई और रूम से बाहर आ गई । उसने अपना कमरा फिर भी ठीक नहीं किया । सोचा, माँ तो कर ही देंगी ।
रात होने पर माँ ने बताया - "बेटा, कल से आप की गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हो गई हैं और कल ही हम शिमला जा रहें है ।"
"अरे, वाह! नानी माँ के पास !" - अन्वी की आवाज़ में ख़ुशी भर गई ।
"मुझे और पापा को जो समान ले जाना है, वह यहाँ रखा है । मैं पैकिंग करने जा रही हूँ । तुम भी अपना सामान ले आओ ।"
माँ ने कहा तो अन्वी बहुत खुश हुई । भागकर गई अपनी अलमारी से कपडे लाने के लिए, पर पूरी अलमारी में कपडे बिखरे हुए पड़े थे । उस को कोई जींस मिल रही थी, तो उसका टॉप नहीं मिल रहा था । कोई टॉप मिल रहा था, तो उसकी स्कर्ट नहीं मिल रही थी । उसने माँ को बुलाया - "माँ मेरी हेल्प करो । कुछ भी नहीं मिल रहा है ।"
"जो मिले, ले के आ जाओ । मुझे अभी बहुत काम है ।" - माँ ने जानबूझकर यह कहकर टाल दिया ।
अन्वी को जो भी उल्टा-सीधा मिला, ले के आ गई । माँ ने भी बिना देखे बेमेल कपड़े रख दिए । अन्वी थोड़ी दुखी तो हुई, पर नानी से मिलने की ख़ुशी में सब भूल गई ।
नानी के घर जाकर अन्वी ने ख़ूब मस्ती की और गर्मी में शिमला के ठंडे मौसम का उसने घूम-फ़िरकर पूरा आनंद भी लिया । कभी-कभी अपने बेमेल कपड़े देख के दुखी जरूर हो जाती थी । सरकस का शो देखकर उसे बहुत मज़ा आया ।
वहाँ नानी माँ ने अन्वी को म्युजिक सुनानेवाली एक बहुत प्यारी गुड़िया लेकर दी । अन्वी को गुड़िया बहुत पसंद आई । गुड़िया को पा के वह बहुत ख़ुश थी । पूरे दिन उसको गोद में ले के घूमती रही । घर आने के बाद भी वो बालकनी में बैठ के गुड़िया के साथ खेलती रही । नानी माँ ने जब खाने के लिए बुलाया, तो जैसी कि अन्वी की आदत थी, गुड़िया को वहीं छोड़ के आ गई ।
खाना खा के सभी लोग सो गए । अगली सुबह सब सामान रख के माँ-पापा के साथ अन्वी भी ख़ुशी-ख़ुशी वापस आ गई । घर पहुँच के माँ सामान निकालने लगी ।
अन्वी ने कहा - "माँ, प्लीज़ मुझे गुड़िया दे दो न ।"
"बेटा, तुमने कहाँ रखी थी? मुझे तो नहीं मिल रही है ।" - माँ ने बताया ।
अन्वी ने सारे सामान में खोजा, पर गुड़िया नहीं मिली । वो माँ के गले लग के रोने लगी - "माँ, मैने सोचा था अपनी फ्रेंड्स को दिखाऊँगी । पर अब कैसे दिखाऊँगी ? लगता है गुड़िया नानी माँ की बालकनी में ही छूट गई । मेरी ही लापरवाही से ।"
इतने में माँ ने छुपाकर रखी हुई गुड़िया निकाल के अन्वी को दिखाई । अन्वी बहुत ख़ुश हो गई । दौड़ के आई और माँ से लिपट के बोली - "मेरी अच्छी माँ, अब से मैं हमेशा अपना सामान सँभाल के रखूँगी ।"
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प्रमाण-पत्र
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बाल मन की कोमलता को सँवारने का समवेत प्रयास
नन्हा मन
बाल-रचना प्रतियोगिता - १
(लखनऊ, भारत ♥ डैलस,अमेरिका) ने इस प्रतियोगिता के प्रतिभाग कर
अपनी कहानी "अन्वी की सीख" पर द्वितीय स्थान प्राप्त किया ।
इन्हें निर्णायकों द्वारा प्रथम चरण में 08 और
द्वितीय चरण में 05 अंक प्रदान किए गए ।
इस प्रकार इन्हें 20 आओ से कुल 13 अंक प्राप्त हुए ।
द्वितीय स्थान प्राप्त करने पर
हम सबकी ओर से आपको हार्दिक बधाई ।
-- निर्याणक गण --
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
और
डॉ. ज़ाकिर अली रजनीश
-- संयोजक : बाल-रचना प्रतियोगिता - १ --
रावेंद्रकुमार रवि
-- निवेदक --
बहुत प्रेरक बाल रचना है रचना जी को बहुत बहुत बधाई आभार्
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
जवाब देंहटाएंकैसा लगा.. अच्छा या बुरा ?
कुछ और भी चाहते हैं, आप..
इसमें बुरा लगने वाला भी कुछ होता है क्या...?
अन्वी की ये दूसरी कहानी पढी है,,,
मेरे जैसे ला-परवाह बच्चों को बहुत ही सुंदर अंदाज़ में सीख दी गयी है,,,,,
आपका बहुत बहुत धन्यवाद रचना जी,
सादर
मनु...