कौआ बहुत सयाना होता।
कर्कश इसका गाना होता।।
पेड़ों की डाली पर रहता।
सर्दी, गर्मी, वर्षा सहता।।
कीड़े और मकोड़े खाता।
सूखी रोटी भी खा जाता।।
सड़े मांस पर यह ललचाता।
काँव-काँव स्वर में चिल्लाता।।
साफ सफाई करता बेहतर।
काला-कौआ होता मेहतर।।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
कौव्वे का बहुत सही और सुंदर चित्रण....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बाल रचना!
जवाब देंहटाएंकांव-कांव करता कौआ काला
जवाब देंहटाएंइधर-उधर घूमे मतवाला
रखता सब पर पैनी नज़र
पर न देखे अपना घर
कोमल कोयल करे शैतानी
कहां कौए की नजर स्यानी
कौए पर कविता पढकर मुझे तो बहुत मजा आया , बच्चे भी मजा लेंगे ।
सुन्दर कविता के लिए बधाई-सीमा सचदेव
बहुत अच्छा ब्लॉग है , बिलकुल हमारे लिए .कौव्वे का बहुत सही और सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंअपने प्रिय ब्लॉग में शुमार हो चुका है आपका ब्लॉग
जवाब देंहटाएंसरस बाल कविता. कौए पर अन्य दृष्टि से लिखी गयी एक रचना शीघ्र ही प्रस्तुत करूंगा.
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