नन्हा मन

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18 जनवरी 2010

नन्हे मुन्नों की कहानियां - बडों के लिए - (१) कुर्सी

नन्ही-मुन्नी कहानियां उन छोटी-छोटी कहानियों का संग्रह है जिन्हें पहले बिना सोचे सुनाया गया और फ़िर लिखा गया । इसका श्रेय जाता है मेरे चार साल के बेटे शुभम को जिसको हर चीज में मुझसे कहानी सुनने का शौंक है और मै उसके लिए कोई न कोई कहानी गढने पर मजबूर हो जाती हूं । आज जब मैं अनजाने में ही पल में बिना सोचे समझे कहानी गढकर सुना देती हूं , सच कहुं तो खुद नहीं जानती कि मैं क्या बोलने वाली हूं और बोलते-बोलते कहानी बन जाती है तो सोचती हूं कि शायद हितोपदेश/पंचतंत्र की कहानियां भी ऐसे ही लिखी गई होंगी । खैर जो भी हो जो कहानियां मैं आपको सुनाने जा रही हूं यह बहुत ही कम उम्र के बच्चों के माता-पिता के लिए हैं । अगर आपके भी दो से पांच साल के बच्चे हैं और आपसे भी कहानी सुनने की जिद्द करते हैं , और हर प्रश्न का जवाब मांगते हैं तो निश्चय ही यह कहानियां आपके अवश्य काम आएंगी ।
(१) कुर्सी

मम्मी मम्मी कुल्सी(कुर्सी) की बात बताओ न ।
बेटा कुर्सी वह होती है जिस पर हम बैठते हैं ।
जैसे मेले पास है ......
हां बेटा जैसे आपके पास है ।
कुल्सी पल बैते(बैठते) हैं ?
हां बेटा
क्यों , खले क्यों नहीं होते ?
कुर्सी पर खडे होने से गिर जाते हैं और चोट लग जाती है ।
फ़िर कुल्सी मालती(मारती) है ?
हां.....
मालने से क्या होता है ?
मारना गंदी बात होती है , किसी को मारना नहीं चाहिए ?
क्यों....?
अब तो मेरे पास किसी क्यों का जवाब नहीं था और शुभम प्रश्न पे प्रश्न करते जा रहा था । मुझे थोडा गुस्सा आने लगा लेकिन नन्हे मन में इतने सारे प्रश्न आए कहां से और अगर उसको शान्त नहीं किया गया तो कहीं यह प्रश्न बच्चे के बाल-मन में दब कर न रह जाएं , यही सोचकर मैं जैसे तैसे जवाब दे रही थी । स्वय़ पर जैसे तैसे काबु किया ही था कि शुभम नें फ़रमाईश दाग दी ......
मम्मी कुल्सी की बात बताओ न ......
अब कुर्सी के बारे में मेरे पास बताने को कुछ नहीं था ।
(और बताती भी तो क्या कि सब कुर्सी का खेल है । एक कुर्सी की खातिर हम क्या-क्या कर जाते हैं और नन्हा-मन यह सब बातें समझे भी तो कैसे ?)
लेकिन हिम्मत करके बोलना शुरु किया तो पता ही न चला कि कहानी बन गई......
एक नन्हा-मुना बेबी था ।
जैसे मैं ....
हां जैसे शुभम ।
उसके पास एक कुर्सी थी ।
जैसे मेले पास है ?
हां ,जैसे आपके पास है , वैसी ही सुन्दर-सुन्दर कुर्सी बेबी के पास भी थी ।
वह उस पर बैठ कर खाना खाता , लिखता , पढता और होम-वर्क करता था ।
जैसे मैं भी कलता हूं न ?
हां जैसे आप करते हो वैसे ही बेबी भी करता ।
कुर्सी भी बेबी के अलावा किसी और को अपने ऊपर नहीं बैठने देती थी । जो भी उस पर बैठता उसे गिरा देती और गिरने वाले को चोट लग जाती । यह देखकर कुर्सी को बडा मजा आता ।
कुल्सी बेबी को भी गिला देती
नहीं , कुर्सी को बेबी का उस पर बैठना अच्छा लगता था पर वह किसी और को नहीं बैठने देती ।
जो भी उस पर बैठ कर गिरता उसे बहुत दर्द होता ,पर कुर्सी हर बार ऐसा ही करती ।
एक दिन पता है क्या हुआ ?
क्या....?
( बाल-मन नें बडी उत्सुक्ता से पूछा नहीं जनाता था कि मैं जो पूछ रही हूं कि क्या हुआ , वो खुद नहीं जानती कि क्या हुआ , जब आगे कोई बात नहीं सूझती तो हम शायद ऐसी बात करते हैं कि बोलने के लिए शायद कुछ सूझ ही जाए या फ़िर सामने वाला कोई ऐसी बात करदे कि बोलने के लिए कोई शब्द मिल जाएं )
बस इतने में मुझे भी सूझ ही गया और कहानी आगे बढाई.......
एक दिन कुर्सी पर जैसे ही बेबी का एक फ़्रैण्ड बैठने लगा तो बेबी ने उसे झट से मना कर दिया ...
नहीं नहीं मेली कुल्सी पल मत बैतना , तुम गिल जाओगे ।
और उसका फ़्रैण्ड जो बस बैठने ही वाला था एकदम से खडा हो गया ।
कुर्सी को रोज की तरह लगा कि उस पर कोई बैठ गया है और धडाम से गिर गई , उसे पता ही नहीं चला कि बेबी का फ़्रैण्ड तो उस पर बैठा ही नहीं है ।
फ़िल (फ़िर ) क्या हुआ ?
फ़िर जैसे ही कुर्सी धडाम से गिरी उसकी एक टांग टूट गई ।
अब उसकी कितनी टांगें रह गईं ?
कितनी ?
काऊंट करो...
वन , टू , थ्री.......
हां अब कुर्सी की थ्री टांगें रह गईं और थ्री टांगों पर तो कुर्सी खडी नहीं हो सकती थी ।
उसको चोट लग गई थी ।
फ़िल उसको पी (पीडा ) हुई ।
हां फ़िर उसको पी हुई और उसे कुर्सी के डाक्टर के पास लेकर गए । जैसे चोट लग जाए तो डाक्टर के पास जाना पडता है ।
फ़िल दाकतल (डाक्टर) इंजैक्श्न लाता(लगाता) है ।
हां बेटा जैसे डाक्टर चोट को ठीक कर देता है वैसे ही कुर्सी के डाक्टर नें भी कुर्सी को ठीक कर दिया ।
कुल्सी को पी हुई..?
हां.... कुर्सी को बहुत पी हुई । अगर वो दूसरों को नहीं मारती तो कुर्सी को भी पी नहीं होती और उसे डाक्टर के पास नहीं जाना पडता ।
जो दूसरों को मारते हैं उनको खुद को पी हो जाती है ।
इसलिए...
दूसलों को मालना नहीं चाहिए ........कहकर शुभम खिलखिला कर हंसने लगा । शायद उसकी सारी जिग्यासा शान्त हो चुकी थी ।

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