नन्हा मन

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24 फ़रवरी 2010

होलिका और प्रह्लाद की कहानी

नमस्कार बच्चो , होली का त्योहार और हम हाज़िर हैं आपके लिए विशेष जानकारी लेकर कि होली का त्योहार क्यों मनाया जाता है , इसके पीछे क्या मान्यता है और क्यों यह जन-जन का प्रिय त्योहार है । प्यारे बच्चो इसके साथ बहुत सी कथाएं जुडी हैं , इससे संबंधित कुछ कहानियां मैं आपको एक-एक कर सुनाऊंगी । पहले सुनिए वह कहानी जिसके साथ मुख्य रूप से यह त्योहार जोडा जाता है ।

होलिका और प्रह्लाद
एक बार एक दानव था , वह बहुत अत्याचारी था । उसका नाम था - हिरणाक्शप । वह इतना अहंकारी था कि स्वयं को भगवान से बढकर मानता था और निर्दोष लोगों का वध कर स्वयं को बलशाली कहता था । लोग उसके जुल्म से बहुत दुखी थे लेकिन क्या करते उन मासूमों की राक्षस के आगे एक न चलती ।वह तो सब से यही कहता कि बस किसी और की नहीं मेरी ही पूजा होनी चाहिए , मैं ही भगवान हूं । अगर कोई उसका विरोध करने का साहस करता तो उसको जान से ही हाथ धोना पडता । लोग डरते हुए उसकी पूजा करते । लेकिन बच्चो - अहंकार बहुत देर तक नहीं फ़लता और आखिर एक दिन उसका अंत होता ही है ।
हिरणाक्शप के साथ भी ऐसा ही हुआ -
उसका एक पुत्र था , जिसका नाम था प्रह्लाद । वह हर दम ईश्वर की भक्ति में मग्न रहता और अपने ही पिता का विरोध करता । हिरणाक्श्प बाकी सबको तो जोर-जबरदस्ती से स्वयं को भगवान मानने पर मजबूर कर देता लेकिन अपने ही बेटे का विरोध न कर पाया , और उससे अपनी बात कभी न मनवा पाता । प्रह्लाद जो बहुत छोटा सा बच्चा था अपने पिता का विरोध कर भगवान विष्णु की अनन्य उपासना करता ।
हिरणाक्श्प नें अपने पुत्र को तरह-तरह के लालच देकर बहुत समझाया लेकिन असफ़ल रहा । उसको इतना क्रोध आया कि उसने अपने ही पुत्र से प्रतिशोध लेने की ठान ली और उसे एक ऊंचे पर्वत की चोटी से नीचे गिराया लेकिन प्रह्लाद को नीचे गिरकर ऐसा लगा मानों उसे किसी नें गोदि में उठाकर झूला झुलाया हो । फ़िर प्रह्लाद को एक ऐसे कमरे में बंद कर दिया जिसमें जहरीले सांप थे लेकिन जब कुछ समय बाद कमरे का दरवाज़ा खोला गया तो उसको नागों के साथ खेलते हुए पाया , जहरीले नाग भी प्रह्लाद का कुछ न बिगाड पाए ।
यह देखकर हिरणाक्शप बहुत क्रोधित हुआ । उसके मन में तो अपने ही पुत्र के लिए बदले की भावना भरी थी । वह किसी भी तरह उसे मार देना चाहता था लेकिन उसका तो हर प्रयास असफ़ल हो रहा था ।
फ़िर उसको एक और उपाय सूझा । उसकी एक बहन थी , जिसका नाम था होलिका जिसके पास वरदान स्वरूप एक ऐसी ओढनी थी जिसे ओढ कर वह आग में भी बैठ जाए तो अग्नि उसको जला नहीं सकती थी । अपने सारे प्रयास असफ़ल देख हिरणाक्शप नें सोचा कि क्यों न प्रह्लाद को बहन होलिका की गोदि में बैठाकर आग में बैठाया जाए जिससे उसकी बहन का तो कुछ नहीं बिगडेगा लेकिन प्रह्लाद अवश्य जलकर राख हो जाएगा । बस यह विचार आते ही उसने अपनी बहन को बुलाया और उसे सब कुछ अच्छे से समझा दिया ।
होलिका नें प्रह्लाद को गोदि में उठाया और लकडियों के ढेर पर बैठ गई । नीचे से जैसे ही आग जलाई गई तो हवा का एक ऐसा झोंका आया कि उसकी ओढनी उतर कर प्रह्लाद के सिर पर आ गई और देखते ही देखते होलिका जल गई जबकि उस भयानक अग्नि में भी प्रह्लाद का बाल भी बांका न हुआ बल्कि उसे तो ऐसा महसूस हुआ जैसे वह फ़ूलों की सेज पर विश्राम कर रहा हो । यह देखकर सभी स्तब्ध रह गए । नारयण का नाम जप कर प्रह्लाद तो बच गया था , सत्य की विजय हुई थी और पाप का विनाश हुआ था । बस तभी से होली बुराईयों को जलाकर नाश करने वाला त्योहार बडी श्रद्धा , उल्लास , उत्साह से मनाया जाता है ।
बच्चो जिसके मन में सच्चाई होती है , भगवान सदैव उसका साथ देते हैं । इसलिए
मन में बैर भाव न लाना
खुशी से होली पर्व मनाना ।
रंग-रंगीली होली पर्व की ढेरों शुभ-कामनाएं । कल मैं सुनाऊंगी इससे जुडी एक और कहानी । तब तक आप अपनी परीक्षा की तैयारी कीजिए , खुश रहिए । आपकी -----सीमा सचदेव

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