राधा - कष्ण की होली
प्यारे बच्चे आपको इतना तो मालूम ही होगा कि श्री कष्ण रंग के काले थी और राधा जी गोरी । राधा जी अकसर कान्हा को काला-काला कहकर चिढाती रहती और कान्हा को यह सुनकर बहुत बुरा लगता । एक बार जब राधा जी नें अपनी सखियों के साथ मिलकर कान्हा को खूब काला-काला कहकर चिढाया तो कान्हा रोते-रोते अपनी मां यशोदा जी के पास आकर बोले-
मां-मां मैं काला क्यों हूं , मुझे राधा रोज काला-काला कहकर चिढाती है । उसे अपने गोरे होने पर बहुत गुमान है ।
मां कान्हा के छोटे से मुख से ऐसी प्यारी सी भोली सी बात सुनकर भाव-विभोर हो गई और कान्हा को अंक में भर कर अत्यंत स्नेह लुटाती हुई बोली - तो जाओ तुम राधा के ऊपर रंग डाल दो तो वो भी गोरी नहीं लगेगी ।
बस मां नें तो ऐसे ही कान्हा को मनाने के लिए हंसी-मज़ाक में ही कह दिया था लेकिन कान्हा को तो बहाना मिल गया था और उसनें सभी ग्वालों को साथ लेकर राधा तथा उसकी सखियों के ऊपर चुपके से जाकर रंग डालना शुरु कर दिया । यह देख कर राधा जी और उनकी सखियों को भी क्रोध आ गया और उन्होंनें कान्हा तथा उसके सखाओं को लाठियों से पीटना शुरु कर दिया । उस दिन फ़ाल्गुन मास की पूर्णिमा का दिन था । बस तभी से यह त्योहार ब्रज में रंग-रंगीली होली और बरसाना की लट्ठमार होली के रूप में मनाया जाने लगा ।
प्यारे बच्चो त्योहार मनाने के पीछे कारण जो भी हो , उद्देश्य एक ही होता है - प्रेम-प्यार सौहार्द के साथ मिल-जुल कर रहना । यह त्योहार हमें एक दूसरे के निकट आने का अवसर प्रदान करते हैं तो मन के सारे गिले शिकवे भी दूर करने का अवसर भी प्रदान करते हैं । आओ हम सब भेद-भाव भुला मस्ती में यह पर्व मनाएं ।
आओ हम सबको रंग डालें
भेद भाव न मन में पालें
प्यारे बच्चे आपको इतना तो मालूम ही होगा कि श्री कष्ण रंग के काले थी और राधा जी गोरी । राधा जी अकसर कान्हा को काला-काला कहकर चिढाती रहती और कान्हा को यह सुनकर बहुत बुरा लगता । एक बार जब राधा जी नें अपनी सखियों के साथ मिलकर कान्हा को खूब काला-काला कहकर चिढाया तो कान्हा रोते-रोते अपनी मां यशोदा जी के पास आकर बोले-
मां-मां मैं काला क्यों हूं , मुझे राधा रोज काला-काला कहकर चिढाती है । उसे अपने गोरे होने पर बहुत गुमान है ।
मां कान्हा के छोटे से मुख से ऐसी प्यारी सी भोली सी बात सुनकर भाव-विभोर हो गई और कान्हा को अंक में भर कर अत्यंत स्नेह लुटाती हुई बोली - तो जाओ तुम राधा के ऊपर रंग डाल दो तो वो भी गोरी नहीं लगेगी ।
बस मां नें तो ऐसे ही कान्हा को मनाने के लिए हंसी-मज़ाक में ही कह दिया था लेकिन कान्हा को तो बहाना मिल गया था और उसनें सभी ग्वालों को साथ लेकर राधा तथा उसकी सखियों के ऊपर चुपके से जाकर रंग डालना शुरु कर दिया । यह देख कर राधा जी और उनकी सखियों को भी क्रोध आ गया और उन्होंनें कान्हा तथा उसके सखाओं को लाठियों से पीटना शुरु कर दिया । उस दिन फ़ाल्गुन मास की पूर्णिमा का दिन था । बस तभी से यह त्योहार ब्रज में रंग-रंगीली होली और बरसाना की लट्ठमार होली के रूप में मनाया जाने लगा ।
प्यारे बच्चो त्योहार मनाने के पीछे कारण जो भी हो , उद्देश्य एक ही होता है - प्रेम-प्यार सौहार्द के साथ मिल-जुल कर रहना । यह त्योहार हमें एक दूसरे के निकट आने का अवसर प्रदान करते हैं तो मन के सारे गिले शिकवे भी दूर करने का अवसर भी प्रदान करते हैं । आओ हम सब भेद-भाव भुला मस्ती में यह पर्व मनाएं ।
आओ हम सबको रंग डालें
भेद भाव न मन में पालें
आपको लट्ठमार होली कैसी लगी , अवश्य बताना । मैं कल आपको एक और इससे जुडी कहानी सुनाऊंगी । तब तक होली मनाएं , खुश रहें ....सीमा सचदेव
जानकारी पढ़कर मन ख़ुश हो गया!
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मिलने का मौसम आया है!
"रंग" और "रँग" में से किसमें डूबें?
हो... हो... होली है!
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संपादक : सरस पायस