चहककर बोले-अभी तो वह डेढ़ किलो की ही है...इतनी छोटी...सी.. मनोज को इस तरह बात करता देखे मुझे अहसास हुआ कि बच्चे के संसार में आने के बाद हर पिता अपना छूटा हुआ बचपन पा लेता है..बच्चे के बड़े होने के साथ-साथ वह भी उसकी तरह ऊर्जावान होने लगता है ..और थम जाता है कुछ पल के लिए शरीर पर चढ़ता बुढ़ापा)

पापा ! पापा ! मैं आ गयी
जब पता लगा
मैं आने वाली हूं,
तो पापा कुछ हुए परेशान,
पर मन ही मन खुश होते रहे
क्योंकि मैं आने वाली हूं,
खुशियों का पुलंदा लाने वाली हूं,
नित नए नखरे ढाने वाली हूं,
क्योंकि मैं आने वाली हूं,
और पापा का इंतजार बढ़ता रहा,
कभी सुस्त, कभी दिल तेज धड़कता रहा,
पलकों में सपनों का आकाश लिए,
पापा खुश होते रहे मेरी मुस्कान के लिए,
कितनी करवटें बदली रातों में ,
दिन में भी डॉक्टर को फोन किया,
मेरा एक स्पर्श पाने करने के लिए,
मां के पेट को टटोलते रहे
मेरी हलचल से खुश होते रहे
पल पल सब्र का बाँध टूटा,
और माँ की गोद में एक तारा टूटा
क्योंकि
उस दिन मैं ही आ गई,
पापा की आंखों में खुशियां छा गई,
जिन्हें छोड़ आए थे बरसों पहले,
अब मेरे साथ वो भी होंगे अपने,
मेरी खिल-खिल में बीत जाएगा पल
मेरी रुदन से ठहर जाएगा वक्त,
पल-पल पापा अब बचपन में लौटेंगे,
हम दोनों घर को खुशियों में तौलेंगे.
ये घर सिर्फ पापा का न होगा न होगा मेरा
ये चमन होगा जहाँ होगा खुशियों का डेरा
इस चमन में होंगे सारे अपने,
हम फिर से खोजेंगे अपने सपने
पापा मेरे साथ बच्चा बन जायेंगे ,
फिर से अपने बचपन को जी पाएंगे
सच है खुशियाँ कुछ ऐसी ही होती है. हमने भी ऐसा ही महसूस किया था जब हमारी बिटिया ने हमारे जीवन में कदम रखा.
जवाब देंहटाएंbahut pyari kavita bachcho ki tarah masoom bhi .
जवाब देंहटाएंमासूम-सा अहसास।
जवाब देंहटाएंपापा! पापा! मैं आ गई!
जवाब देंहटाएं-------------------
पापा के मन को महकाने,
पापा के सपनों में मुस्काने,
पापा की साँसों में बस जाने,
पापा की आँखों में महकता
फूल बनकर खिल जाने!
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सचमुच, आओ,
मेरे गले से लग जाओ!
मेरे रोम-रोम में सज जाओ!
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मासूमियत से भरा आपका ये कविता और साथ में बड़ा ही प्यारा चित्र के साथ बेहद पसंद आया!
जवाब देंहटाएंमनोज पाठक जी को हमारी ओर से बहुत-बहुत बधाई । सच में आपकी कविता बहुत ही मासूम है प्यारी सी कोमल सी गुडिया की ही भान्ति । हो सके तो प्यारी-प्यारी गुडिया की तस्वीर या वीडियो भी लगाएं । धन्यवाद
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