प्यारी माँ की गोद में!

बच्चे किलक-किलक मुस्काते,
प्यारी माँ की गोद में!
बच्चे फूले नहीं समाते,
प्यारी माँ की गोद में!
बच्चे हैं ख़ुशबू बिखराते,
प्यारी माँ की गोद में!
बच्चे ख़ुश हो गीत सुनाते,
प्यारी माँ की गोद में!
बच्चे हँसकर हमें रिझाते,
प्यारी माँ की गोद में!
बच्चे मीठे स्वप्न सजाते,
प्यारी माँ की गोद में!
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बहुत सुन्दर रचना है बधाई रवीन्द्र रवी जी को और आभार आपका
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र जी आपकी कविता बहुत ही प्यारी बन पडी है ।धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना...
जवाब देंहटाएंmaa......ek aisa shabd jo baccha sabse pahle bolta hai.maa..jo sab se pahle bacche ko apnepan ka ehssas karati hai.apne apni is rachna se usi maa aur bacche ke rishte ko bahut hi khobsoorti se vyakt kiya hai....dhanyawaad
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमैं तो सोच भी नहीं सकता था
जवाब देंहटाएंकि "नन्हा मन" पर मेरी रचनाओं के प्रकाशन की शुरूआत
इतनी मनभावन और इतनी प्यारी माँ के साथ होगी!
यह कविता रचने के बाद तो मेरा मन भी "नन्हा" हो गया है!
कपिला जी को धन्यवाद कविता रचवाने के लिए,
सीमा जी को प्रकाशित करने के लिए,
रंजन और विनय भाई को इसे प्यारी व सुंदर बनाने के लिए!
नेहा के शब्दों से बरसे नेह ने तो मेरा यह मन ही महका दिया!
मैं ख़ुश हूँ - अपने मन-मीत "कान्हा" को देखकर!
bahut sundar
जवाब देंहटाएंकिलकारी भरकर जब बालक,
जवाब देंहटाएंपुलक-पुलक मुस्काते हैं।
नया खिलौना पाकर के,
ये फूले नही समाते है।
तुतलाई भोली-भाषा में,
जब ये अधर खोलते हैं,
मम्मी-पापा के मन को,
ये बालक बहुत रिझाते हैं।
माँ की गोदी में इनका,
संसार समाया रहता है,
नन्हें मन की शैतानी से,
ये सबको हर्षाते हैं।
बहुत सुंदर,
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी!
इस अमूल्य टिप्पणी,
नहीं,
कविता के लिए!
आभारी हूँ!
बालमन के अनुरूप माँ पर रचित एक अभिनव गीत!
जवाब देंहटाएंभैया ...यह बाल कविता बहुत ही अच्छी लगी. बहुत ही सुन्दर गीत है यह.
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