गोकुल में मुझे छोड के आओ
नन्द बाबा की कन्या लाओ
सूप में कान्हा को लिया डाल
चला वासुदेव धीमी सी चाल
बाहर वर्षा और तूफ़ान
सिर पर बैठे स्वयं भगवान
शान्त चित्त मन में विश्वास
पहुंचा जब यमुना के पास
पर न इक पल भी वो ठहरा
चलने लगा नदी के अंदर
चले कमल ज्यों कोई जल पर
नाग एक यह देख के आया
आकर अपना फ़ण फ़ैलाया
प्रभु के ऊपर करदी छाया
वर्षा से कान्हा को बचाया
पर गहरा यमुना का जल
छूट रहा पैरों से तल
लगा अभी ही बह जाएगा
सुत को नहीं बचा पाएगा
पर कान्हा के चरण कमल
छूकर नीचे आया जल
फ़ूल बिछे हों पथ पर जैसे
कान्हा को सिर पर उठाए
वासुदेव नन्द के घर आए
कान्हा छोड कन्या को उठाया
माया नें क्या खेल रचाया
किसी को भी न हुई खबर
आ गए कान्हा नन्द के घर
के घर छोडकर आने तथा उनकी क्न्या को उठाकर लाने को कहा । वासुदेव नें श्री कष्ण को एक सूप में डाला और गोकुल की तरफ़ चल दिए । चलते हुए ऐसा प्रतीत हुआ मानो स्वयं प्रभु उसको बांह पकडकर ले जा रहे हैं । मथुरा से गोकुल जाने के लिए वासुदेव को जमुना नदी को पार करना था और वर्षा के कारण यमुना नदी में पानी बहुत तेज गति से बह रहा था लेकिन वासुदेव को तो जैसे सुध ही न थी वह बिना इसकी प्रवाह किए नदी में घुस गया । वासुदेव ने सूप को सिर पर रखा और नदी पार करने लगा । पानी वासुदेव के सिर तक आ गया था लेकिन फ़िर भी वह चलते जा रहा था । ऊपर से वर्षा हो रही थी । नदी में एक नाग ने प्रभु श्री कष्ण को देखा और उन्हें भीगने से बचाने के लिए ऊपर आ कर अपना फ़ण फ़ैला लिया और जब प्रभु श्री कष्ण नें देखा कि यमुना नदी में अब वासुदेव के लिए चलना कठिन हो गया है तो उन्होंने अपना एक पैर सूप में से बाहर निकाला और यमुना जल को जैसे ही छुआ , नदी का पानी अपने आप नीचे हो गया । वासुदेव नें नदी पार की । गोकुल पहुंचकर नन्द बाबा के घर देखा कि सब लोग सो रहे थी । वहां उनके घर कन्या का जन्म हुआ था । वासुदेव नें श्री कष्ण जी को यशोदा जी के पास लेटा दिया और उनकी कन्या को उठा कर वापिस चल दिए ।
इस तरह श्री कष्ण नन्द बाबा के घर गोकुल में आ गए ।
अच्छा लगा कथा पढ़कर और रचना भी...बधाई.
जवाब देंहटाएंबाल-कविता बढ़िया रही!
जवाब देंहटाएंये कथा तो बार-बार अच्छी लगती है..शुक्रिया आपका"
जवाब देंहटाएंकृष्ण की बाल लीला कविता में मार्मिक लगी .
जवाब देंहटाएंकित्ती प्यारी बाल-लीला...मजा आ गया.
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पाखी की दुनिया में- 'जब अख़बार में हुई पाखी की चर्चा'