इधर कान्हा तो नन्द-बाबा और यशोदा मैया के घर गोकुल में रहने लगे लेकिन उधर कंस को पता चला कि देवकी का आठवां पुत्र श्री कष्ण है तो उसने श्री कष्ण को मारने के कई प्रयत्न किए । एक बार उसने पूतना राक्षसी को कान्हा को किसी भी तरह से मार देने के लिए गोकुल भेजा । पूतना अपना वेश बदलकर गोकुल में आई और कान्हा को धोखे से उठाकर आसमान में उडने लगी । यह देखकर सब ब्रजवासी डर गए लेकिन नन्हें से दूधमुंहे कान्हा नें पूतना को अपने नन्हें हाथों से ही मार गिराया और स्वय़ं उसके ऊपर बैठकर ऐसे खेलने लगे जैसे कुछ हुआ ही नहीं । यह देखकर सब हैरान थे । कान्हा को सुरक्षित देखकर मां यशोदा और बाबा नन्द उसकी नजर उतारने लगे और ईश्वर को धन्यवाद देने लगे ।
देवकी सुत ही है ब्रजराज
जिन्दा है अभी उसका काल
ब्रज में रहता है बन ग्वाल
पूतना राक्षसी को बुलवाया
सारा किस्सा उसे सुनाया
किसी तरह कान्हा को मार
करदो कुछ मेरा उद्धार
सुन पूतना नें बदला वेश
झट से पहुंची ब्रज प्रदेश
धोखे से कान्हा को लेकर
पहुंची नभ में वो उडकर
धरती पे पूतना को गिराया
गिरते ही उसने दम तोडा
तभी कान्हा नें उसको छोडा
लगे खेलने उसपर ऐसे
रेत के टीले पर हों जैसे ।
आईये पढें ... अमृत वाणी।
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