लालची बाघ
दुनिया उसकी प्यारी-प्यारी
था उसका छोटा परिवार
एक गाँव मे था घर-बार
रोज ही जन्गल मे वो जाता
एक पशु को मार के लाता
आकर घर म सबको खिलाता
जीवन ऐसे ही बिताता
इक दिन मृग खाने की चाह
निकल पडा जन्गल की राह
जाते ही मिल गया हिरन
सोचा उसने अच्छा दिन
झट से उसको मार गिराया
और फिर कन्धो पे उठाया
जा रहा था वापिस घर
देख लिया इक जन्गली सुअर
हिरन को नीचे झट से गिराया
जन्गली सुअर पे बाण चलाया
गरदन पार हुआ वह बाण
खतरे मे थी सुअर की जान
शिकारी को भी मार गिराया
मृग ,शिकारी और सुअर
गिरे पडे थे धरती पर
इतने मे आया इक बाघ
बोला मेरे जग गए भाग
इनको अकेले ही खाऊँगा
किसी को भी न बतलाऊँगा
पर मै पहले किस को खाऊँ
स्वाद का कैसे पता लगाऊँ
देखेगा थोडा सब चखकर
भरेगा पेट वो तब जाकर
सुअर की गरदन मे जो बाण
मास का उस पर है निशान
पहले वह उस मास को खाए
और स्वाद का पता लगाए
खाने लगा मास का टुकडा
बाण से कट गया उसका जबडा
चीर के जबडा सिर मे धँसकर
मरा बाघ उस तीर मे फँस कर
जो न बाघ यूँ लालच करता
तो वो ऐसे ही न मरता
जो न मन मे लालच आता
तो मजे से सबको खाता
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चित्रकार - मनु बेतख्लुस जी
बहुत ही बढ़िया कविता
जवाब देंहटाएंसुनकर mazaaaaa आ गया
nupur
रोचक-शिक्षाप्रद, सुरुचिपूर्ण
जवाब देंहटाएंसीमा जी,
जवाब देंहटाएंपहले नमस्कार ,,,,फिर नमन,,,
सबसे पहले अआते ही अपनी तरह से कविता पाठ सूना कहीं कहीं कुछ मामूली अटकाव लगा,,,
फिर नमन,,,
आपने एक बाल कथा कहे है,,,बच्चों के लिए,,,,,
वो भी मैंने एक छोटे बच्चे की तरह ही कान लगाकर सूनी,,,,कहीं भी कोई अटकाव या उलझन महसूस नहीं हुई,,,,,एक बाल कल्याण में रत टीचेर या कोई सुरीली सी मदर टेरेसा ,,,,आवाज में नन्हे मुन्नों के लिए मानो एक परी गुनगुनाती सी लगी....
और मैं कुछ ना कह सका,,,,,