
होली का इक भेद बताऊं
एक बार छोटे से कान्हा
माँ को देने लगे उलाहना
क्यों कुदरत ने भेद है पाला
राधा गोरी और मै काला
गोरे रंग पे उसे गुमान
करती है बहुत अभिमान
सुन मुस्काई जस्मति मैया
सुत की लेने लगी बलैया
हँसी हँसी में माँ यूँ बोली
राधा भी तेरी हमजोली
भ्रम कोई न मन में पालो
जाओ राधा को रंग डालो
कान्हा को मिल गया बहाना
ग्वालों संग पहुंचे बरसाना
सखियों संग राधा को पाया

गुलाल जा चुपके से लगाया
सखियों ने भी लट्ठ चलाया
इक दूजे को रंग लगाया
खेल खेल में खेली होली
बन गए वो सारे हमजोली
तब से यह हर वर्ष मनाएं
जब फागुन की पूनम आए
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