आपको पता है न कि आज बुद्ध पूर्णिमा है- महात्मा बुद्ध का जन्म ५६३ ई. पूर्व कपिलवस्तुके पास लुम्बिनी (वर्तमान रुम्मनदीई) नामक स्थान पर हुआ । आपके बचपन का नाम सिद्धार्थ था ।आपके पिताजी का नाम शुद्धोधन और माता जी का नाम महामाया था ।सोलह साल की उम्र में उनका विवाह यशोधरा जी के साथ हुआ ।
उनके जन्म के विषय में बताया जाता है कि आपके पिता को विद्वानों द्वारा बताया गया था कि इनका बूढे, रोगी , म्रतक और सन्यासी से कभी सामना न हो तभी यह आज्य कर पाएगा । कहा जाता है कि २९ वर्ष की अवस्था में एक बार नगर भ्रमण के लिए निकले तो इनका सामना उपरोक्त चारों से हो गया और उत्सुकता वश अपने सारथी से इन सबके बारे में पूछा तो उसने बताया कि श्रीर है तो कोई न कोई तो रोग होगा ही । बचपन है तो बुढापा भी होगा ।।जिसका जन्म हुआ है उसकी मौत भी अवश्यंभावी है ।सांसारिक दुखों से बचने के लिए लोग सन्यास ग्रहण करते हैं , यह सब बातें सुनकर इनमें वैराग्य उतपन्न हो गया और रात के अंधेरे में अपने पुत्र व पत्नी को निद्रावस्था में छोड सत्य की खोज में निकल पडे । इसके लिए उन्होंने कठिन तप किया । महावरिक्ष के नीचे आठ दिन तक स्माधिवस्था में वैशाख्की पूर्णिमा के दिन उन्हें सच्चे ग्यान की प्राप्ति हुई । यहीं से सिद्धार्थ गौतम बुद्ध कहलाए । उन्होंने दुनिया को उपदेश देते हुए कहा कि:-
१. यह संसार दुखों का घर है ।
२.दुखों का कारण तरिष्णा है ।
३.तरिशणाओ पर विजय ही दुखों की स्माप्ति का एकमात्र साधन है ।
४.आश्टांग मार्ग्का अनुसरण करने पर तरिशणाओं पर विजय पाई जा सकती है ।
महात्मा बुद्ध की यह शिक्षाएं बौद्ध धर्म के रूप में आदर्श बनीं और आज भी देश विदेश में मान्य है।
आज के लिए इतना ही
बुद्ध-पूर्णिमा की आप सबको हार्दिक बधाई ।
आपकी
सीमा सचदेव
उनके जन्म के विषय में बताया जाता है कि आपके पिता को विद्वानों द्वारा बताया गया था कि इनका बूढे, रोगी , म्रतक और सन्यासी से कभी सामना न हो तभी यह आज्य कर पाएगा । कहा जाता है कि २९ वर्ष की अवस्था में एक बार नगर भ्रमण के लिए निकले तो इनका सामना उपरोक्त चारों से हो गया और उत्सुकता वश अपने सारथी से इन सबके बारे में पूछा तो उसने बताया कि श्रीर है तो कोई न कोई तो रोग होगा ही । बचपन है तो बुढापा भी होगा ।।जिसका जन्म हुआ है उसकी मौत भी अवश्यंभावी है ।सांसारिक दुखों से बचने के लिए लोग सन्यास ग्रहण करते हैं , यह सब बातें सुनकर इनमें वैराग्य उतपन्न हो गया और रात के अंधेरे में अपने पुत्र व पत्नी को निद्रावस्था में छोड सत्य की खोज में निकल पडे । इसके लिए उन्होंने कठिन तप किया । महावरिक्ष के नीचे आठ दिन तक स्माधिवस्था में वैशाख्की पूर्णिमा के दिन उन्हें सच्चे ग्यान की प्राप्ति हुई । यहीं से सिद्धार्थ गौतम बुद्ध कहलाए । उन्होंने दुनिया को उपदेश देते हुए कहा कि:-
१. यह संसार दुखों का घर है ।
२.दुखों का कारण तरिष्णा है ।
३.तरिशणाओ पर विजय ही दुखों की स्माप्ति का एकमात्र साधन है ।
४.आश्टांग मार्ग्का अनुसरण करने पर तरिशणाओं पर विजय पाई जा सकती है ।
महात्मा बुद्ध की यह शिक्षाएं बौद्ध धर्म के रूप में आदर्श बनीं और आज भी देश विदेश में मान्य है।
आज के लिए इतना ही
बुद्ध-पूर्णिमा की आप सबको हार्दिक बधाई ।
आपकी
सीमा सचदेव
वाह, मैं भूल कर कहीं किसी नये ब्लाग के पते पर तो नहीं आ गया हूँ ?
जवाब देंहटाएंएक जानकारीपूर्ण आलेख , धन्यवाद !
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद डा. अमर जी
जवाब देंहटाएंडा. अमर जी
जवाब देंहटाएंबुद्ध-पूर्णिमा पर सुन्दर लेख प्रकाशित करने के लिए
धन्यवाद।
जितनी सुन्दर प्रस्तुति है, उससे भी कहीं सुन्दर आपका ये ब्लाग है...आभार
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद
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