पापा
पापा ये सण्डे भी गयापापा वो सण्डे भी चला गया था
आप कित्ता काम करते हो?
रोज रात को लेट करते हो।
फिर भी कुछ नया लाते नहीं।
पूछो तो बताते तक नहीं..
पापा अबकी सण्डे घूमाने ले जाना
पापा मुझे आइस्क्रीम भी खिलाना।
पड़ोस के अंकल भी काम करते हैं
पर वो तो टाइम पर लौटते हैं।
हर सण्डे राहुल को घुमाने ले जाते हैं।
मेरे लिए भी गुब्बारे ले आते हैं।
पापा तुम क्यों बताते नहीं।
तकलीफ बेटी से छुपाते नहीं।
पापा ये सण्डे फिर नहीं आएंगे कभी।
पापा मैं भी विदा हो जाऊंगी कहीं।
पापा इस सण्डे ले जाना कहीं
पापा ये सण्डे फिर आएंगे नहीं।
समद्री जी की इस कविता मे आज के बच्चे का दर्द साफ झलक रहा है। सीमा जी आपका बच्चों के साहित्य के प्रति समर्पण वन्दनीय् है। मन करता है कि मै भी बच्चों के लिये कुछ लिखूँ मगर अभी लिख नही पा रही। इस के लिये खेद है। मगर कोशिश जरूर करूँगी। धन्यवाद और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंवास्तव में आज के बच्चे उम्र से ज्यादा बडे हो गए हैं और समझदार भी । आपकी कविता नें तो मुझे भावुक कर दिया । धन्यवाद ....सीमा सचदेव
जवाब देंहटाएंभावुक करती रचना. बच्चे की मनोस्थिति को सुन्दर शब्द दिये हैं.
जवाब देंहटाएंसोमाद्रि जी,
जवाब देंहटाएंमन को छू गई -
आपकी यह रचना!
इसे पढ़ने के बाद ऐसा लगा -
जैसे यह रचना आपने इस नन्ही बिटिया के
मन में बैठकर रची है!
सोमाद्रि जी की बाल कविता सुन्दर है!
जवाब देंहटाएंबधाई हो रवि जी!
नन्हामन पर आपका स्वागत करता हूँ!
शुभागमन!