प्रतीक जी मैने पहले भी कहा था कि आपके चित्र मुझे बहुत प्रभावित करते हैं और कहीं न महीं अपने साथ घटी घटनाओं का अहसास करवाते हैं । आपका यह चित्र देखते ही मुझे अपने बचपन की वो कहानी याद आ गई , जब मैं सचमुच छत से कूद गई थी और संयोग से बच गई । यह घटना मैने अपनी पुस्तक खट्टी-मीठी यादें में लिखी भी है और उसे ज्यों का त्यों टिप्पणी के रूप में यहीं लगा रही हूं । इतने सुन्दर और प्रभावी चित्रों के लिए धन्यवाद :- -------------------------------------------------
4.छत से कूदना
जब हम गाँव में रहते थे तो हमारे घर में एक छोटा सा स्टोर-रूम होता था , जिसकी छत ज़्यादा उँची न थी |तब मैं कितनी बड़ी थी-याद नहीँ | एक बार मैं और सुमन दीदी( मेरी बड़ी बहन) घर में अकेले खेल रही थी |खेलते - खेलते ही हम स्टोर-रूम की छत पर जा पहुँचीं |और न जाने कैसे खेल-खेल में ही हममे चवँनी-चवँनी (25 पैसा) की शर्त लग गई कि जो छत से कूदेगा उसे चवँनी मिलेगी |तब हमे हर रोज आठन्नी(50 पैसा) मिलती थी, जिसमें से हमने चवँनी दाँव पर लगा दी थी -और शर्त थी छत से कूदना |बात तो सिर्फ़ खेल-खेल में ही हो रही थी,लेकिन मेरे लिए यह मेरी इज़्ज़त का स्वाल था-भला मैं हार कैसे मान लेती | और यहाँ तो शर्त लगी थी,जो मैं बिल्कुल भी नहीँ हार सकती थी |बस फिर क्या था- मैं देखते ही देखते छत से कूद गई |सयोंग से नीचे पड़ी चारपाई पर गिरी और मुझे कुछ नहीँ हुआ |और अपनी इस बहादुरी के लिए मेरा सर तो गर्व से उँचा हो गया था | मैं जीत जो गई थी |मुझे उस दिन अजीब सी खुशी महसूस हो रही थी जैसे मैने कोई जंग जीत ली हो |यह कौन सी खुशी थी-छत से कूदने कि या फिर चवँनी जीतने कि- मालूम नहीँ |मुझे लगा था मुझे अपनी इस बहादुरी पर मम्मी-पापा से शाबाशी मिलेगी लेकिन हुआ -इसके बिल्कुल उल्टा ही| मुझे इनाम में मिला तो सिर्फ़ और सिर्फ़ झिड़की | सच्च में उस दिन तो किस्मत से ही बच गई थी |
प्रतीक जी मैने पहले भी कहा था कि आपके चित्र मुझे बहुत प्रभावित करते हैं और कहीं न महीं अपने साथ घटी घटनाओं का अहसास करवाते हैं । आपका यह चित्र देखते ही मुझे अपने बचपन की वो कहानी याद आ गई , जब मैं सचमुच छत से कूद गई थी और संयोग से बच गई । यह घटना मैने अपनी पुस्तक खट्टी-मीठी यादें में लिखी भी है और उसे ज्यों का त्यों टिप्पणी के रूप में यहीं लगा रही हूं । इतने सुन्दर और प्रभावी चित्रों के लिए धन्यवाद :-
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4.छत से कूदना
जब हम गाँव में रहते थे तो हमारे घर में एक छोटा सा स्टोर-रूम होता था ,
जिसकी छत ज़्यादा उँची न थी |तब मैं कितनी बड़ी थी-याद नहीँ |
एक बार मैं और सुमन दीदी( मेरी बड़ी बहन) घर में अकेले खेल रही थी |खेलते -
खेलते ही हम स्टोर-रूम की छत पर जा पहुँचीं |और न जाने कैसे खेल-खेल में ही
हममे चवँनी-चवँनी (25 पैसा) की शर्त लग गई कि जो छत से कूदेगा उसे चवँनी
मिलेगी |तब हमे हर रोज आठन्नी(50 पैसा) मिलती थी, जिसमें से हमने चवँनी
दाँव पर लगा दी थी -और शर्त थी छत से कूदना |बात तो सिर्फ़ खेल-खेल में ही हो
रही थी,लेकिन मेरे लिए यह मेरी इज़्ज़त का स्वाल था-भला मैं हार कैसे मान लेती |
और यहाँ तो शर्त लगी थी,जो मैं बिल्कुल भी नहीँ हार सकती थी |बस फिर क्या था-
मैं देखते ही देखते छत से कूद गई |सयोंग से नीचे पड़ी चारपाई पर गिरी और मुझे
कुछ नहीँ हुआ |और अपनी इस बहादुरी के लिए मेरा सर तो गर्व से उँचा हो गया था |
मैं जीत जो गई थी |मुझे उस दिन अजीब सी खुशी महसूस हो रही थी जैसे मैने कोई
जंग जीत ली हो |यह कौन सी खुशी थी-छत से कूदने कि या फिर चवँनी जीतने कि-
मालूम नहीँ |मुझे लगा था मुझे अपनी इस बहादुरी पर मम्मी-पापा से शाबाशी मिलेगी
लेकिन हुआ -इसके बिल्कुल उल्टा ही| मुझे इनाम में मिला तो सिर्फ़ और सिर्फ़ झिड़की |
सच्च में उस दिन तो किस्मत से ही बच गई थी |
Very Nice.
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
GOOD PICTURE ....
जवाब देंहटाएंबहुत बडिया पिक्चर के साथ सीमा जी की कहानी भी पढ ली धन्यवाद
जवाब देंहटाएंप्रतीक घोष जी का चित्रांकन सुन्दर है!
जवाब देंहटाएंबधाई हो रवि जी!
नन्हामन पर आपका स्वागत करता हूँ!
शुभागमन!