जंगल मे रहता इक हाथी
नही बनता वो किसी का साथी

अकेले ही जंगल मे घूमता
बाकी सबको को छोटा कहता
मुझ सा जंगल मे न कोई
सोच के सब मर्यादा खोई
मैं तो सबसे बड़ा यहां पर
कर सकता हूँ राज जहाँ पर
जो कोई भी मुझसे टकराए
वो तो बस मुँह की ही खाए
क्यो मैं इनको समझूँ साथी
नही हो सकता मैं जजबाती
अपने में खुश होता रहता
स्वयं को ही बलशाली कहता
पर इक दिन इक वृक्ष के नीचे
सोया था हाथी आँखें मीचे
चींटी इक ऊपर से गिर गई
और हाथी के कान मे पड़ गई
भागा इधर-उधर वो हाथी
पर कोई नही था उसका साथी
आ के कौन अब उसको बचाता
नही था उसका किसी से नाता
चींटी जब हाथी को काटे
तड़प के हाथी मारे लातें
गया वो सबके पास वहां पर
मिलकर बैठे सारे जहां पर
हाथ जोड़ कर बोला हाथी
समझो मुझको अपना साथी
अब तुम मेरी जान बचा लो
कान से मेरे चींटी निकालो
सुन कर हँसने लगे थे सारे
दिख गए हाथी को दिन मे तारे
पर इक चूहा समझदार था
उन सबमें से होशियार था
उसने उन सबको समझाया
अच्छाई का नियम बताया
आड़े वक़्त मे काम जो आए
वही सबसे अच्छा कहलाए
आयें हम हाथी के काम
होगा अपना भी ऊँचा नाम
सबको बात समझ में आई
हाथी के संग की भलाई
सबने चींटी निकाली मिलकर
मिली राहत उसको अब जाकर
आई हाथी की जान मे जान
पकड़े उसने अपने कान
अब मैं तुम संग मिल के रहूँगा
कभी न किसी को बुरा कहूँगा
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रहेगा मिलकर सबसे हाथी
अब वो बन गया सबका साथी
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बच्चो तुम भी मिलकर रहना
कभी किसी को बुरा न कहना
बुरे वक़्त मे काम जो आए
वही सच्चा साथी कहलाए
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अच्छी शिक्षा प्रद कविता के लिये बधाई
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