टूट गया जब डाल से पत्ता
उड़कर जा पहुँचा कलकत्ता
भीड़ देखकर वह घबराया
धूल –धुएँ से सिर चकराया
शोर सुना तो फट गए कान
वापस फिर बगिया में आया।
उड़कर जा पहुँचा कलकत्ता
भीड़ देखकर वह घबराया
धूल –धुएँ से सिर चकराया
शोर सुना तो फट गए कान
वापस फिर बगिया में आया।
"फू..... लौट के बुद्धू घर को आए....बहुत बढ़िया कविता....."
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