एक थी प्यारी सी गुडिया और एक उसका एक भाई था मुन्ना । गुडिया उम्र में कम लेकिन समझ में इतनी बडी कि बडों-बडों को मात दे जाए , उसके विपरीत मुन्ना बहुत मासूम सा प्यारा , भोला और थोडा नासमझ था , अभी बहुत छोटा भी तो था । दोनों भाई बहन मिलजुलकर रहते , उनके पापा सुबह काम को जाते और शाम को घर लौटते , घर में सब ऐशो-आराम ,सुख-सुविधा और नौकर - चाकर थे लेकिन एक सबसे बडी कमी थी - मां की । जब मुन्ना बहुत छोटा था तो एक दिन अचानक उनकी मां इतनी गहरी नींद सोई कि फ़िर कभी जगी ही नहीं लेकिन मुन्ना इन सब बातों से अनजान था । गुडिया सब समझती थी , लेकिन मां की कमी उसे कितनी खलती है किसी को महसूस ही न होने देती ।
एक दिन मुन्ना गुडिया से बोला , दीदी अगर हमारी मां होती तो वो भी हमें घुमाने ले जाती न , चलो हम घूम कर आते हैं ?
गुडिया बोली ...नहीं ,नहीं मुन्ना , बाहर बहुत धूप है , और तुम इतने छोटे हो चलते-चलते थक जाओगे , हम बाहर घूमने नहीं जा सकते ।
गुडिया के मुंह से ना सुनकर मुन्ना बहुत निराश हुआ और गुस्सा होकर बिना कुछ बोले चुपचाप जाकर सो गया । गुडिया को भाई का इस तरह रूठना बहुत बुरा लगा , उसनें बहुत मनाने का प्रयास किया लेकिन मुन्ना नें गुडिया के साथ कोई बात नहीं की ।
गुडिया सोचने लगी कि वह कैसे अपने भाई को मनाए , वह तो तभी मानेगा , जब वह उसे घुमाने लेकर जाएगी ।
फ़िर गुडिया को एक ख्याल आया - उनके पास एक खिलौना गाडी थी जिसमें बैठकर अकसर वे दोनों खेला करते थे , उसने सोचा क्यों न वह इसमें भाई को बैठाकर घुमाने के लिए ले जाए । भाई को धूप से बचाने के लिए उसनें गाडी पर एक छाता लगाया और फ़िर अंदर जाकर भाई को जगाकर ले आई ।
उसे गाडी में बैठाया और पूरा शहर घुमाकर वापिस ले आई , मुन्ना पूरा शहर घूमकर बहुत खुश हुआ , उसे ऐसा लगा मानो उसकी मां उसे मिल गई हो । भाई को खुश देखकर गुडिया गर्व से फ़ूली न समाई और बडी बहन मां का फ़र्ज़ निभाकर बहुत प्रसन्न थी ।
इस तस्वीर को देखकर ही यह कहानी लिखी गई थी काव्य कथा के रूप में ।
बचपन में सुनते थे कहानी,
कभी सुनाते दादा-दादी,
कभी सुनाते नाना-नानी
होती थी कुछ यही कहानी
एक था राजा, एक थी रानी
दोनों मर गये ख़त्म कहानी
आज सुनो तुम मेरी ज़ुबानी
न कोई राजा, न कोई रानी
एक है भाई, एक है बहना
दोनों का मिलजुल कर रहना
भाई तो है छोटा बच्चा
और अभी है अकल में कच्चा
बहना भी है गुड़िया रानी
पर वो तो है बड़ी सयानी
माँ की ममता मिली नहीं है
बाप के पास भी वक़्त नहीं है
घर में सारी ऐशो-इशरत
आगे-पीछे नौकर-चाकर
दोनों प्यारे-प्यारे बच्चे
नन्हे से पर दिल के सच्चे
दोनों ही बस प्यार से रहते
सुख-दुख इक दूजे से कहते
इक दिन भाई बोला-बहना!
सुनो ध्यान से मेरा कहना
आज अगर अपनी माँ होती
हमें घुमाने को ले जाती
चलो कहीं पर घूम के आएँ
हम भी अपना दिल बहलाएँ
गुड़िया रानी बड़ी सयानी
समझ गई वह सारी कहानी
बोली तुम न जा पायोगे
चलते-चलते थक जायोगे
ऊपर से तो धूप भी होगी
चलोगे कैसे गर्मी होगी?
सुन कर भाई निराश हो गया
और जाकर चुपचाप सो गया
गुड़िया ने तरकीब लगाई
जिससे खुश हो जाए भाई
उनकी थी एक खिलौना गाड़ी
करते थे वो जिसपे सवारी
क्यों न उस पर भाई को बैठाए
और घुमाने को ले जाए
उस पर एक लगाया छाता
गुड़िया को तो सब कुछ आता
भाई को उसने जा के जगाया
और गाड़ी पर उसे बैठाया
निकल पड़ी वो लेकर गाड़ी
गुड़िया रानी नहीं अनाड़ी
भाई को पूरा शहर घुमाया
बहन ने माँ का दर्जा पाया
ख़त्म हो गई मेरी कहानी
ऐसी थी वो गुड़िया रानी।
****************************
जवाब देंहटाएंएक सु्गढ़ कहानी, रोचक अँदाज़,
फिर उस पर चस्पॉ एक सर्वव्यापी nice
इस नाइस पर..
भला कौन न वारी वारी जाये ?
Wow ! मन मुदित हुआ !
बढिया कहानी..
जवाब देंहटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएंbadhai aap ko is ke liye
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
बहुत अच्छी कहानी और कविता भी... सच में बड़ी बहनें अपने छोटे भाईयों को खूब प्यार करती हैं....."
जवाब देंहटाएं