जेल में देवकी और वासुदेव
जपते रहते हरि सदैव
एक- एक हुए सुत सात
सौंप दिए सब कंस के हाथ
वासुदेव नें वचन निभाया
कंस नें उनको मार मुकाया
अब थी आठवें सुत की बारी
कर ली कंस नें खूब तैयारी
किसी तरह बाहर न जाए
जन्मते ही मेरे हाथ में आए
जब उसको दूंगा मै मार
तभी हटेगा मन का भार
कष्ण पक्ष और भाद्र मास
आ गया बच्चो दिन वो खास
जब कान्हा ने लिया जन्म
मिट गया सब धरा का तम
कारी अंधियारी थी रात
सो गए सारे पहरेदार
खुल गए स्वयं जेल के द्वार

निश्चिन्त जीवन जी पाएगा । आखिर भाद्र माह के कष्ण पक्ष की आठवीं तिथि को भगवान श्री कष्ण जी का जन्म हुआ । जिसका कंस को बेसब्री से इंतजार था वह दिन आ गया था । उसे तो अपने काल का विनाश करना था लेकिन विधाता नें तो उसके भाग्य में कुछ और ही लिख रखा था । तेज आंधी तूफ़ान काली अंधियारी रात में श्री कष्ण जी का जन्म हुआ और जन्म
लेते ही जेल के ताले अपने आप खुल गए , सभी पहरेदार गहरी निद्रा में सो गए । प्रभु श्री कष्ण नें जन्म लेते ही अपनी माया का ऐसा जाल फ़ैलाया कि किसी को कोई सुध ही न रही । समय जैसे थम सा गया । काली अंधियारी आधी रात में प्रक्ट होकर प्रभु नें अपनी माता-पिता को अपना चतुर्भुज रूप दिखाया ।
अच्छी और रोचक लीला बर्णन है
जवाब देंहटाएंachhi rachna
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