दो बिल्लियां रहतीं इक साथ
चाहे दिन हो चाहे रात साथ में दोनों घूमने जातीं
मिलकर अपना समय बितातीं
एक बार वो घर से निकलीं
थी वो दोनों बहुत ही भूखी
दिख गई उनको रोटी एक
खोया दोनों ने विवेक
मेरी मेरी करके झगडने
दोनों लगीं आपस में लडने उन दोनों को पास बुलाया
देख के उनके पास में रोटी
बंदर की हुई नियत खोटी
लगा वो दोनों को समझाने
प्रेम-प्यार का पाठ पढाने
आपस में तुम कभी न लडना
रोटी आधी-आधी करना
मानो जो तुम मेरी बात
रोटी दे दो मेरे हाथ
आधी-आधी करके दूँगा
दोनों से इन्साफ करूंगा
मानी बिल्लियों ने यह बात
थी बंदर की नियत खोटी
दो टुकडों में बांटी रोटी
एक बडा इक छोटा टुकडा
हुआ बिल्लियों में फ़िर से झगडा
बंदर ने तो की चतुराई
तोड के रोटी खुद ही खाई
बंदर ने खा लिया निवाला
छोटा हुआ टुकडा बडे वाला
दोनों टुकडे नहीं बराबर
करूं सम कुछ रोटी खाकर दूसरे टुकडे से भी खाई
बिल्लियों को पर समझ न आई
पूरी रोटी खा गया बंदर
भाग गया झट से तरु पर
मजे से उसने खाया खाना
पर बिल्लियों को पडा पछताना
...................
जो न वो आपस में झगडतीं
रोटी आधी आधी करतीं
आधा आधा पेट तो भरता
बंदर चलाकी न करता
सच में बहुत मज़ा आया...."
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..वाह!
जवाब देंहटाएंइस सुन्दर पोस्ट की चर्चा "चर्चा मंच" पर भी है!
जवाब देंहटाएं--
http://charchamanch.blogspot.com/2010/06/193.html
शानदार रचना। :)
जवाब देंहटाएंनया लेख :- पुण्यतिथि : पं . अमृतलाल नागर