उनके भी आंसू बहते हैं
सोचो जरा इक बात तो आखिर
क्या वो भी हमसे कुछ कहते हैं?
जो हैं हमारे जीवन रक्षक
क्यूं हम उनके भक्षक बन जायें
जो जीवन को देने वाले हैं
उनके ही दुश्मन कहलायें।
काटने पर हम तुले हैं जिसको
शहर शहर और गांव गांव
आने वाले समय में फ़िर भी
मिलेगी न हमको उनकी छांव।
जिनसे धरती का आंचल लहराये
पर्यावरण को सुरक्षित करते
जो हमारे लिये ही तो
धूप ठंढ बारिश को सहते।
प्रकृति है जिससे हरी भरी
जो बादल से बारिश ले आते
जिनके कारण ही तो हम
नव जीवन हैं अपनाते।
तो आओ हम बच्चे ही एक जुट हो जायें
फ़िर पेड़ न एक कटने पाये
जगह जगह पर पेड़ लगा कर
हरियाली वसुन्धरा पर लायें।
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पूनम
बहुत बेहतरीन!
जवाब देंहटाएं"बहुत अच्छी...."
जवाब देंहटाएंजगह जगह पर पेड़ लगा कर
जवाब देंहटाएंहरियाली वसुन्धरा पर लायें।
.....अब तो यही करना पड़ेगा...
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'पाखी की दुनिया' में समीर अंकल के 'प्यारे-प्यारे पंछी' चूं-चूं कर रहे हैं...
बहुत सुन्दर कविता है !
जवाब देंहटाएंरचना पढकर अच्छा लगा!
जवाब देंहटाएं--
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है-
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/07/7.html