मैया यशोदा जी की गोदि में आकर कान्हा वहीं पर पलने लगे । कोई भी यह न समझ पाया कि कान्हा तो स्वयं भगवान हैं । वे गोप-ग्वालों के संग मिलकर खेलते और खेल खेल में ही अपनी लीला भी दिखाते ।मां जसोदा का लाडला और बाबा नन्द की आंखों का तारा जो संपूर्ण स्र्ष्टि का मालिक , वही गोकुल में गाय चराता । जो पूरी दुनिया को देने वाला है वही गोपियों के घर जाकर उनका दही माखन खाता । कभी यमुना तट पर रास रचाता तो कभी मुरली की मधुर तान से सब का मन मोह लेता ।
कभी इधर -उधर छुप कर मां को खूब सताता तो कभी चोरी से मिट्टी खाता ।उसकी लीला कभी कोई समझ नही पाता , बस वह अपनी बातों ही से सब का मन मोह लेता ।
मां जसुदा की गोदि में आकर
तरह तरह के खेल दिखाकर
गोप-ग्वालों को गले लगाए
खेल खेल में खेल दिखाए
मां जसुदा का राज-दुलारा
बाबा की आंखों का तारा ।
तीन लोक का नाथ कहावे
जो सारी सष्टि का दाता
दही माखन गोकुल में चुराता
यमुना तट पर रास रचावे
मुरली बजा कर सबको रिझावे
कभी चोरी से मिट्टी खाए
लीला उसकी समझ न आए
बातों ही से सबको रिझाए ।
कान्हा की बाल-लीलाएं-1
कान्हा की बाल-लीलाएं-2
कान्हा की बाल-लीलाएं-3
sundae rachna hai.kanha ka to khel hi nirala hai.
जवाब देंहटाएंjag se nirala, kanha humaara
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
Sundar...
जवाब देंहटाएंबड़ी नटखट लीला है कान्हा की..मनभावन.
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पाखी की दुनिया में 'पेड़ कहीं कटने ना पायें'
बहुत अच्छा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंmujhko yah rachna ruchee.
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