झाँसी की रानी की कहानी कथा-काव्य के माध्यम से
बच्चो एक बहादुर नारी
माने जिसको दुनिया सारी

लक्ष्मी बाई था उसका नाम
किए अनूठे उसने काम
माँ भगीरथ की सन्तान
पिता मोरोपन्त की जान
काशी नगरी जन्म स्थान
मनु नाम से मिली पहचान
गंगाधर सँग विवाह रचाया
लक्ष्मी बाई नाम फिर पाया
निभाया अपना पत्नी धर्म
दिया एक पुत्र रत्न को जन्म
पर विधिना ने दिया न साथ
खोया प्यारा सुत इक रात
लिया गोद दामोदर राव
भरा नि:संतान का घाव
भाग्य फिर भी था विपरीत
कुछ दिन मे ही खोया मीत
अब अकेली रह गई रानी
फिर भी उसने हार न मानी
अपनाया झाँसी का राज
पहन लिया रानी का ताज
पर अंग्रेजो को न भाया
और रानी को कह सुनाया
गोद लिया सुत नही कोई माने
खुद को वो रानी न जाने
हो गई रानी अब मजबूर
भाग्य भी था कितना क्रूर
हुआ वहाँ अंग्रेजी राज
छिन गया रानी का ताज
सन अठारह सौ सत्तावन
बदला फिर रानी का जीवन

भड़की आजादी की आग
रानी अब फिर से गई जाग
झाँसी पर अधिकार जमाया
अंग्रेजो को मार भगाया
पर साथी कुछ थे गद्दार
पीठ के पीछे किए प्रहार
अंग्रेजो को भेद बताया
झाँसी से रानी को भगाया
कालपी पहुँच गई अब रानी
पेशवा को जा कही कहानी
आया पेशवा को भी क्रोध
किया अंग्रेजो का विरोध
जीत लिया ग्वालियर का किला
अंग्रेजो को सबक मिला
पर न साथी थे वफादार
नही थे उनके उच्च् विचार
अंग्रेजो से बेपरवाह
जीत मनाने लगे अथाह
कुछ ने दिया रानी को धोखा
मिल गया अंग्रेजो को मौका
घोडे पर अब निकली रानी
किन्तु हार किस्मत ने मानी
नाला पडा था इक पथ पर
ठहर गया घोडा वहीं पर
आ पहुँचे वहीं पर अंग्रेज
हुआ युद्ध दोनो मे तेज
अंत समय मे घायल रानी
साथी को इक बात बखानी
खत्म हो रहा मेरा जीवन
पर न छुए मुझे कोई अपावन

रानी का साथी था खास
साधु की कुटिया थी पास
जाके वही रानी को छुपाया
अंत समय रानी का आया
छूट गया था यह संसार
वही हुआ अंतिम संस्कार
बन गई उसकी अमर कहानी
ऐसी थी झाँसी की रानी
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