
एक कहानी आज सुनाऊँ
शीश महल का राज बताऊँ
शीश महल मे रहती बाला
पर बाला का दिल था काला
थी वो बाला बडी घमण्डी
गुस्से मे दिखती थी चण्डी
शीश महल के अन्दर रहती
और लोगो को गन्दा कहती
सारी दुनिया मै देखुँगी
पर ना किसी से बात करूँगी
यहाँ से देखुँगी आकाश
बन्द कमरे मे भी प्रकाश
मेरा घर है कितना सुन्दर
मै तो रहुँगी इसके अन्दर
फैन्कती ऊपर से वह पत्थर
लोगो के घायल होते सिर
मार के पत्थर वो हँस देती
खुद को अन्दर बन्द कर लेती
बडे दुखी थे लोग बेचारे
करते क्या सारे के सारे
पर बच्चो यह करो विश्वास
फलता नही घमण्ड दिन खास
इक दिन एक परिन्दा आया
कङ्कर उसने मुँह मे दबाया
शीश महल उसने जब देखा
देख के रह गया वो भौच्चका
हुई थी उसको बहुत हैरानी
खुली चोञ्च ,कर दी नादानी
गिरा वो कङ्कर शीश महल पर
जिससे टूटा बाला का घर
देखती रह गई उसको बाला
लग गया उसके मुँह पे ताला
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बच्चो तुम भी सीखो इससे
बुरा करम न हो कोई जिससे
शीशे के होते जिनके घर
नही फैन्कते दूसरो पे पत्थर
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