किलकारी भरकर जब बालक,
पुलक-पुलक मुस्काते हैं।
नया खिलौना पाकर के,
ये फूले नही समाते है।
किलकारी भरकर जब बालक,
पुलक-पुलक मुस्काते हैं।
तुतलाई भोली-भाषा में,
जब ये अधर खोलते हैं,
मम्मी-पापा के मन को,
ये बालक बहुत रिझाते हैं।
किलकारी भरकर जब बालक,
पुलक-पुलक मुस्काते हैं।
माँ की गोदी में इनका,
संसार समाया रहता है,
नन्हें मन की शैतानी से,
ये सबको हर्षाते हैं।
किलकारी भरकर जब बालक,
पुलक-पुलक मुस्काते हैं।
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बच्चों का तो ऐसा ही है..सुन्दर अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंaapki kavita bilkul bachche kee muskaan si komal , tutali boli si madhur aur pyaari si kilkaari si meethi hai . bahut-bahut DHANYAVAAD
जवाब देंहटाएं...........
जवाब देंहटाएंआपकी कविता
बहुत सुंदर लगी,
प्यार-सी मीठी
छुअन मन में जगी!
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बसा दिया इसने
इस मन में
बच्चों का संसार!
सजा दिया इसने
नयनों में
सपनों का अंबार!
.............
कविता बहुत सुंदर है। लेकिन इसे बाल कविता कहना उचित न होगा।
जवाब देंहटाएं"बच्चों के लिए लिखना बहुत कठिन है। कोशिश करूंगा शायद कुछ लिख पाऊँ।"
जवाब देंहटाएंयह कहने वाले वरिष्ठ ब्लॉगर द्विवेदी जी,
क्या यह स्पष्ट कर पायेंगे कि उनके अनुसार यह कविता बहुत सुंदर होने पर भी इसे बाल कविता कहना उचित क्यों नही होगा?
आप कोशिश करके पहली बाल कविता लिखकर प्रकाशित करवाइए, ताकि मैं भी बाल कविता के बारे में अपनी समझ विकसित कर सकूँ।