पेंसिल
पेन्सिल बच्चों को भाती है।
काम कई उनके आती है।।
अक्षर-मोती से लिखवाती।
नित्य ज्ञान की बात बताती।।
रंग-बिरंगी, पतली-मोटी।
लम्बी-ठिगनी, ऊँची-छोटी।।
लिखती कविता, गणित करे।
हँस भाषा-भूगोल पढ़े।।
चित्र बनाती बेहद सुंदर।
पाती है शाबासी अक्सर।।
बहिना इसकी नर्म रबर।
मिटा-सुधारे गलती हर।।
घिसती जाती,कटती जाती।
फ़िर भी आँसू नहीं बहाती।।
'सलिल' जलाती दीप ज्ञान का।
जीवन सार्थक नाम-मान का।।
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एक सफल और सार्थक बालकविता!
जवाब देंहटाएंअंतिम दो पंक्तियाँ बच्चों के हिसाब से
कठिन लग रही हैं!
badhiya kavita hai. bachchon ko ekdam bhaane wali
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंरंग-बिरंगी पेंसिलें, बच्चों को बहुत लुभाती है।
जवाब देंहटाएंवो इनसे क,ख,ग, ए,बी,सी,डी भी लिखवाती हैं।।
रेखाचित्र बनाना, इसके बिना असम्भव होता है।
कला बनाना, केवल इससे ही सम्भव होता है।।
गल्ती हो जाये तो, लेकर रबड़ तुरन्त मिटा डालो।
गुणा-भाग यदि करना चाहो, झटपट इसे निकालो।।
छोटी हो या बड़ी क्लास हो, काम सभी में आती है।
इसे छीलते रहो कटर से, यह चलती ही जाती है।।
तख्ती,कलम,स्लेट का,बिल्कुल इसने किया सफाया है।
समय पुराना बीत गया, अब नया जमाना आया है।।
बहुत ही प्यारी कविता रंग बिरंगी पेंसिल की . . .
जवाब देंहटाएंआभार ।
is KALAM ko SALAAM aur AACHAARAYA ji ki lekhani ko bhi
जवाब देंहटाएंधन्यवाद है सभी को, कद्रदान है आप.
जवाब देंहटाएं'सलिल' कीर्ति औदार्य की, सके जगत में व्याप..