कहीं पे तो आकाश को छूते
कहीं पे आ धरती पर मिलते
कहीं पे नीचे कहीं पे ऊंचे
ऊंचे नीचे नीचे ऊंचे
कहीं पे आ धरती पर मिलते
कहीं पे नीचे कहीं पे ऊंचे
ऊंचे नीचे नीचे ऊंचे
कितने सुन्दर हैं ये पहाड़।
कहीं पे काले कहीं पे भूरे
कहीं बरफ़ से ढके हुये तो
कहीं बड़े पेड़ों में छुपके
हरे भरे दिखते ये पहाड़
कितने सुन्दर हैं ये पहाड़।
कहीं पे कल कल का संगीत
कहीं पे कलरव पाखी का
कहीं दिखे जो देश के दुश्मन
तुरत भुजायें लेते तान
कितने सुन्दर हैं ये पहाड़।
०००
कहीं पे काले कहीं पे भूरे
कहीं बरफ़ से ढके हुये तो
कहीं बड़े पेड़ों में छुपके
हरे भरे दिखते ये पहाड़
कितने सुन्दर हैं ये पहाड़।
कहीं पे कल कल का संगीत
कहीं पे कलरव पाखी का
कहीं दिखे जो देश के दुश्मन
तुरत भुजायें लेते तान
कितने सुन्दर हैं ये पहाड़।
०००
हेमन्त कुमार
BAHUT HI SUNDER
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंपहाडों का darshan karaati .......... पहाडों की kahaani sunaati सुन्दर रचना है hemant जी ...........
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!
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