
यों कहती थी नानी
आओ बच्चो मिलजुल कर
चन्दा की सुनो कहानी
बूढी माई एक चांद पर
रही है चरखा कात
घटते और बढते रहना है
यही चांद की जात
पूनम के दिन पूरा होता
फ़िर घटता ही जाता
घट कर फ़िर बढना उसका
कभी समझ न मुझको आता
कभी बोलती इक दानव ने
बना लिया है निवाला
तभी चमकता चांद भी देखो
हो गया काला काला
कहती चांद पनीर का टुकडा
दागी उसका शाप से मुखडा
आए जब कोई व्रत त्योहार
करते चन्दा को नमस्कार
पर मां , कहती है अब टीचर
चन्दा पे बन सकता है घर
पलक झपकते चान्द पे जाते
कितने दिन वहां रह कर आते
वो भी अवनि सा इक टुकडा
कहां है बोलो उसका मुखडा
टीचर नें यह बात बताई
धरा की जब पडती परछाई
चांद पे हो जाता तम काला

नहीं किसी दानव का निवाला
न बढता वो न घटता है
एक ही जगह टिका रहता है
धरा से दूर वो जब भी होता
दिखने लगता है बस छोटा
पास धरा जब उसके आए
तो चन्दा पूरा दिख जाए
ग्रह एक वो भी भू जैसा
फ़िर करते क्यों उसकी पूजा
क्या नानी का चान्द कोई दूजा
करते हैं सब जिसकी पूजा
क्या सच ! मां मुझको बतलाओ
नानी वाला चान्द दिखाओ ।
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मां बोली ! बेटा जो तुमने
सुनी थी अल्प कहानी
वही सारी बातें कहती थी
मुझे भी मेरी नानी
पर हमने तो आंख मूंद कर
ध्यान से सुनी कहानी
नहीं निचोडा बात को ऐसे
जैसे चान्द पे पानी
चान्द को कभी पकड पाएंगे
देखा नहीं था सपना
पर तुम वहां पे रह सकते हो
डाल के डेरा अपना
चान्द पे आज धमाके होते
पहुंचे बडे ग्यानी
अब सुन-सुनकर चान्द की बातें
चुप हो जाती नानी
कौन सा चान्द सत्य बेटा
कैसे मै तुम्हें बतलाऊं
तुम्हीं बताओ नानी का वो
चान्द कहां से लाऊं ?
कौन सा चान्द सत्य बेटा
जवाब देंहटाएंकैसे मै तुम्हें बतलाऊं
तुम्हीं बताओ नानी का वो
चान्द कहां से लाऊं ?
bahut hi bhaavpoorn arthon ke saath yeh kavita achchi lagi aur dil ko chhoo gayi.....
अब नानी कहे भी तो क्या चंदा पर तो पानी निकाल रहे हैं आने वाली पीढी के लिए चाँद की कहानी नहीं होगी किसी और गृह को पकडा जायेगा!!
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