नभ में कैसा दमक रहा है।
चन्दा मामा चमक रहा है।।
कभी बड़ा मोटा हो जाता।
और कभी छोटा हो जाता।।
करवा-चौथ पर्व जब आता।
चन्दा का महत्व बढ़ जाता।।
महिलाएँ छत पर जाकर के।
इसको तकती हैं जी-भर के।।
यह सुहाग का शुभ दाता है।
इसीलिए पूजा जाता है।।
जब भी वादल छा जाता है।
तब "मयंक" शरमा जाता है।।
लुका-छिपी का खेल दिखाता।
छिपता कभी प्रकट हो जाता।।
धवल चाँदनी लेकर आता।
आँखों को शीतल कर जाता।।
सारे जग से न्यारा मामा।
सब बच्चों का प्यारा मामा।।
(सभी चित्र गूगल सर्च से साभार)
आहा !
जवाब देंहटाएंक्या बात है......
आज तो चन्दा मामा की बल्ले बल्ले हो गई...........
मयंक ने मयंक पर काव्य रच दिया ,,,,,,,,,,
बधाई !
नमस्कार मयंक जी ,
जवाब देंहटाएंआपकी कविता अति सुन्दर लगी ।
मैं एक बात सोचने पर मजबूर भी हूं कि आज हम सब जब चान्द की वास्तविक्ता जानने लगे हैं तो मेरी व्यक्तिगत सोच यही है कि आज के वैग्यानिक युग में हमें पुरानी बातों किस्से-कहानियों की तरफ़ ध्यान न देते हुए बच्चों को वास्तविक्ता से अवगत कराना होगा । बहुत सी बातें ऐसी हैं हमारे किस्से-कहानियों में जिन्हें हमने तो आंख मूंद कर पढा और शायद पचा भी लिया परन्तु आजकल के बच्चे नहीं पचा पाते और उनके मासूम किन्तु विचारणीय प्रश्नों के उत्तर हम नहीं दे पाते । जैसे व्रत त्योहार में चान्द का महत्त्व क्यों है ? यह कैसे सुहाग का रक्षक है ? या फ़िर हम चान्द की पूजा क्यों करते हैं ? मुझे लगता है यह एक बहस का विषय है और इस पर पाठकों के विचार आमंत्रित करने चाहिए ।
सीमा सचदेव जी!
जवाब देंहटाएंआप इस पर एक पोस्ट लगा दीजिए।
इस "वैज्ञानिक युग" में भी यदि हम वैग्यानिक युग ही लिखेंगे तो हिन्दी की वैज्ञानिकता पर तो प्रश्नचिह्न लग ही जायेगा।
यह ब्लॉग आपने विशेषरूप से बच्चों के लिए बनाया है। इसलिए इस बात का ध्यान रखकर वर्तनी शुद्ध लिखी जाये!