नई-नवेली प्यारी गुड़िया,
लगती कितनी न्यारी गुड़िया।
नीली, पीली, लाल, गुलाबी,
सबको खूब लुभाती गुड़िया।
झालरदार फ्राक पहने,
ठुमककर इतराती गुड़िया।
कभी हँसाती, कभी रुलाती,
सुन्दर गीत सुनाती गुड़िया।
कितने रूप हैं देखो इसके,
नटखट, भोली-भाली गुड़िया।
अल्हड़-अलबेली सी यह,
सबको खूब लुभाती गुड़िया।
लगती कितनी न्यारी गुड़िया।
नीली, पीली, लाल, गुलाबी,
सबको खूब लुभाती गुड़िया।
झालरदार फ्राक पहने,
ठुमककर इतराती गुड़िया।
कभी हँसाती, कभी रुलाती,
सुन्दर गीत सुनाती गुड़िया।
कितने रूप हैं देखो इसके,
नटखट, भोली-भाली गुड़िया।
अल्हड़-अलबेली सी यह,
सबको खूब लुभाती गुड़िया।
बहुत अच्छा । बहुत सुंदर प्रयास है। जारी रखिये ।
जवाब देंहटाएंआपका लेख अच्छा लगा।
हिंदी को आप जैसे ब्लागरों की ही जरूरत है ।
अगर आप हिंदी साहित्य की दुर्लभ पुस्तकें जैसे उपन्यास, कहानी-संग्रह, कविता-संग्रह, निबंध इत्यादि डाउनलोड करना चाहते है तो कृपया किताबघर पर पधारें । इसका पता है :
http://Kitabghar.tk
गुडिया के माध्यम से बचपन की मासूमियत को बखूबी उकेरा है .
जवाब देंहटाएंबधाई .
बहुत अच्छी गुड़िया,
जवाब देंहटाएंपर यह खा क्या रही है?
इस गुडिया को पढते-पढते तो एक मुस्कुराती , ठुमक कर इतराती,नटखट , चंचल और शैतान सी गुडिय़ा आंखों के सामने घूमने लगी । रावेंद्र जी गुडिया क्या खा रही है , यह तो वही जाने लेकिन बच्चे कितने मासूम और भोले होते हैं , हम तो यही देख रहे हैं । आकांक्षा जी को बधाई....सीमा सचदेव
जवाब देंहटाएंनई-नवेली प्यारी गुड़िया,
जवाब देंहटाएंलगती कितनी न्यारी गुड़िया।