नवगीत:
सबकी साँसें...
संजीव 'सलिल'
*
क़ैद हुईं बुद्धू-बक्से में सबकी साँसें.....
*
नहीं धूप से अब है नाता.
नहीं धूल का साथ सुहाता.
नहीं हवा के संग झूमता-
नहीं 'सलिल' में डूब तैरता.
समय-पूर्व ही बच्चा भरता
बड़ी उसाँसें.
क़ैद हुईं बुद्धू-बक्से में
सबकी साँसें.....
*
नहीं पहलवानी, ना कसरत.
नहीं निगहबानी, ना हसरत.
नहीं मिलन-बिछुड़न, गत-आगत-
गलतबयानी, काम न फुरसत.
बुढ़ा रहा है यौवन
झुलस रही हैं आसें.
क़ैद हुईं बुद्धू-बक्से में
सबकी साँसें.....
*
नहीं जरूरत रही हमारी.
नहीं सुन रहा कोई कहानी.
नहीं सुबह, ना शाम सुहानी.
नहीं साथ दे काया-बानी.
साँसें-आसें घेर बुढ़ापे
को, मिल फांसें.
क़ैद हुईं बुद्धू-बक्से में
सबकी साँसें.....
*
खेलो-कूदो, धूम मचाओ,
दिन भर, जी भर नाचो-गाओ.
एक कमा, दस लो उधार फिर-
क़र्ज़ चुकाओ, कुछ न बचाओ.
रिश्ते-नाते भूल, रोज
दे-पाओ झाँसें.
क़ैद हुईं बुद्धू-बक्से में
सबकी साँसें.....
*****दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम
http://www.shubhamsachdeva.blogspot.com/
ये बुद्धू बक्सा बड़ा विचित्र है कहने को तो ये बुद्धू है पर है बड़े काम का ...............
जवाब देंहटाएंये बुधु बक्सा नुझे भी पसंद नहीं है
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