नाना जी की मूँछ
जैसे गिलहरी जी की पूंछ
अकड़ी रहती हरदम ऐसे
जैसे कोई रस्सी गयी हो सूख।
नाना जी मूँछों पर अपनी
हरदम देते ताव
पहलवान जी जैसे कोई
जीत गए हों दाँव।
कभी दाई मूँछ तो कभी बांई फ़ड़कती
कभी ऊपर उठती कभी नीचे गिरती
दरोगा की मूँछ भी
उनके आगे पानी भरती ।
नाना जी की मूँछ हरदम
ऐंठन में ही रहती
शान न गिरने पाए कभी
हरदम कोशिश करती ।
नाना जी की मूँछ की
गली गाँव में पूछ
फ़ेल हो गई उनके आगे
नत्थू राम की मूँछ ।
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पूनम
नानाजी की मूंछ के आगे नत्थू राम की मूंछ की क्या चलती..... पूनम आंटी बहुत सुंदर कविता है..... मजेदार :)
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार ..
जवाब देंहटाएंमगर ये नाना जी हैं किसके आपके या आपके बच्चे के
बड़ी मज़ेदार कविता है :D
जवाब देंहटाएंअनुष्का
बड़ी मज़ेदार कविता है
जवाब देंहटाएंरोचक रचना मूँछ पर, मन को भायी खूब.
जवाब देंहटाएंजो बाँचे वह हँसी में, सचमुच जाये डूब..