माँ जो सैनिक होता
मैं ( poem )
काश ! कहीं मैं सैनिक
होता , देश की रक्षा करता माँ
दुश्मन जो सम्मुख आ
जाता , नहीं किसी से डरता माँ ।
ऊँचे पर्वत चढता मैं
, जाता जल की गहराई में ।
नभ की दूरी नाप डालता
, या फ़िर गहरी खाई में ।
कोई मुश्किल न बाधा
बनती , हर पथ नया बनाता मैं ।
दुश्मन मेरे नाम से
डरते , जहां कहीं भी जाता मैं ।
मैं न देखता दुख-सुख
, सर्दी-गर्मी , या फ़िर दिन औ रात ।
जहां पे मैं झंडा फ़हराता
, हो जाता वहीं पर प्रभात ।
हलकी सी आहट सुनकर
भी , चैन की नींद न सोता मैं ।
अपने देश की रक्षा
करता , माँ जो सैनिक होता मैं ।
बहुत ओजस्वी बाल रचना ... ऐसा साहित्य बच्चों के विकास के लिए। अबट ज़रूरी है ...
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