मुहावरे ढूँढो :
चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं, देख लिया जब शेर ,
भीगी बिल्ली बना बहादुर , भागा लाई न देर |
पास हुआ तो फूला नहीं , समाया पप्पू राम |
घर बसाकर समझ आ गया , आटे डाल का दाम |
घूँट लहू का पीकर रह गई , जब देखा अपमान ,
सीता ने गीता के विरोध मे , भरे राम के कान |
पढ़लिख़ कर भी खाक छानते , थक गया वह बेचारा,
एडी चोटी ज़ोर लगाया , पर न मिला सहारा |
गिरगिट का सा रंग बदल लेता है , वह मतलब से ,
गुड गोबर कर देता है, कोई काम करे न ढब से |
घी के दीए जले थे जब , श्रीराम अयोध्या आए ,
कवि लिखे कविता तो , गागर में सागर भर जाए |
खून - पसीना एक करें , तो ही मंज़िल मिल पाए ,
सामने हो कठिनाई , याद फिर दूध छटी का आए |
टस से मस न अंगद की , हुई लंका में लात ,
देख कपि , बलशाली रावण , मलता रह गया हाथ |
दाँतों चने चबा देंगें , ये सैनिक बड़े ही बावारे |
ढूँढ सको तो ढूँढो , इनमें हिन्दी के मुहावरे |
चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं, देख लिया जब शेर ,
भीगी बिल्ली बना बहादुर , भागा लाई न देर |
पास हुआ तो फूला नहीं , समाया पप्पू राम |
घर बसाकर समझ आ गया , आटे डाल का दाम |
घूँट लहू का पीकर रह गई , जब देखा अपमान ,
सीता ने गीता के विरोध मे , भरे राम के कान |
पढ़लिख़ कर भी खाक छानते , थक गया वह बेचारा,
एडी चोटी ज़ोर लगाया , पर न मिला सहारा |
गिरगिट का सा रंग बदल लेता है , वह मतलब से ,
गुड गोबर कर देता है, कोई काम करे न ढब से |
घी के दीए जले थे जब , श्रीराम अयोध्या आए ,
कवि लिखे कविता तो , गागर में सागर भर जाए |
खून - पसीना एक करें , तो ही मंज़िल मिल पाए ,
सामने हो कठिनाई , याद फिर दूध छटी का आए |
टस से मस न अंगद की , हुई लंका में लात ,
देख कपि , बलशाली रावण , मलता रह गया हाथ |
दाँतों चने चबा देंगें , ये सैनिक बड़े ही बावारे |
ढूँढ सको तो ढूँढो , इनमें हिन्दी के मुहावरे |
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