इक़ जन्गल मे एक तलाब

कछुआ उसमे एक जनाब
बगुले वहाँ पे आते अकसर
बैठते आकर वो तरु पर
कछुआ भी बाहर आ जाता
और फिर उनसे खूब बतियाता
बन गए दोस्त बगुले दो
अकसर वहाँ पे आते जो
तीनो मिलकर बाते करते
इधर-उधर मे मस्ती करते
एक बार गर्मी का मौसम
गला सूखता था हरदम
ऊपर से न हुई बरसात
बिन पानी कैसे हो बात
सूख गया तालाब का पानी
खतरे मे सबकी जिन्दगानी
कछुआ बोला बगुले भैया
पार लगाओ मेरी नैया
यहाँ पे अब न रह पाऊँगा
बिन पानी के मर जाऊँगा
मौत के मुँह से मुझे बचाओ
किसी जगह पे और ले जाओ
पडे सोच मे बगुले बेचारे
कैसे ले जाएँ ,मन मे विचारे
सोच के इक तरकीब लगाई
बगुलो ने लकडी उठाई
लकडी को उन्होने मुँह मे दबाया
फिर कछुए को कह सुनाया
देखो इसको बीच मे पकडो
अच्छी तरह दाँतो मे जकडो
उडेगे हम तुम्हे ऐसे लेकर
छोडेगे नई जगह पे जाकर
पर इक बात का रखना ध्यान
नही खोलना अपनी जुबान
जरा सा भी जो मुँह खोलोगे

तो तुम जाकर नीचे गिरोगे
कछुए ने लकडी मुँह मे दबाई
बगुलो ने उडान लगाई
पहुँचे जब ऊँचे आसमान
आया कछुए को एक ध्यान
बगुलो की नसीहत भूला
कहने को कुछ अपना मुँह खोला
गिर गया आकर धरती पर
गिरते ही कछुआ गया मर
अब कछुए को कौन समझाए
बातो ही मे प्राण गँवाए
जो वो बातूनी न होता
तो वो ऐसे ही न मरता
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चित्रकार-मनु बेतख्लुस
अच्छ लिखा है नया साल मुबारक हो
जवाब देंहटाएंbahut sunder composition
जवाब देंहटाएंहितोपदेश- बातूनी कछुआ कहानी को आपने अपने शब्दों में संजो कर कवित का जो रूप दिया है, बच्चों को बहुत अच्छा लगेगा ,
जवाब देंहटाएंआपको बार बार हार्दिक बधाई इसलिए भी देना चाहूँगा की बाल रचनाएँ लिखना सामान्य रचनाओं से कहीं ज्यादा मुश्किल होता है.
बधाई सीमा सचदेव जी
आपका
विजय