दो सहेली चिंकी पिंकी
बन गया उनका दोस्त मिंकी
तीनों ही के घर थे पास
बन गए तीनों दोस्त खास
चिंकी तो थी बडी स्यानी
पर पिंकी करती मनमानी
पर दोनों ही बहुत होशियार
नम्बर वन रहें हर बार
मिंकी थोडा लाप्रवाह
हर पल खेलने ही की चाह
न लेता लिखने का नाम
मुश्किल समझे घर का काम
पर करना तो था मजबूरी
पढने संग लिखना भी जरूरी
पिंकी पास गया इक बार
बातों ही से किए प्रहार
बोला चिंकी है अभिमानी
समझती है वो खुद को स्यानी
तुम भी तो उस सी होशियार
करे क्यों तेरा तिरस्कार
यूं पिंकी का मन बहकाया
अपना घर का काम कराया
अब तो रोज कुछ बातें बनाता
पिंकी से सारा काम कराता
पिंकी गुस्से से भर आई
चिंकी संग की खूब लडाई
चिंकी को कुछ समझ न आया
किसने पिंकी को भडकाया
समझाने का किया प्रयास
पर पिंकी न करे विश्वास
बात-चीत भी हुई समाप्त
और मिंकी को मिल गई राहत
चिंकी ने देखा इक बार
मिंकी खडा पिंकी के द्वार
की कुछ चिंकी की बुराई
फ़िर उसको कॊपी पकडाई
सारी बात समझ में आई
मिंकी ने पिंकी भडकाई
चिंकी ने भी मन में ठाना
पडेगा मिंकी को समझाना
सोचा उसने एक उपाय
दिया जा सब टीचर को बताय
कक्षा में टीचर जब आई
मिंकी को आ सजा सुनाई
सुन मिंकी को हुई हैरानी
सारे किए पे फ़िर गया पानी
अब पिंकी को समझ में आया
मूर्ख मिंकी ने बनाया
अपनी गलती पर पछताई
फ़िर से चिंकी दोस्त बनाई
चलो, मिंकी की सही पहचान तो हो गई.
जवाब देंहटाएंbahut achchhi aur pyari rachna
जवाब देंहटाएंवह भाई वह मज़ा आ गया..बहुत ही अच्छी रचना है......
जवाब देंहटाएंBahut khoob lokha hai aapne.
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
शिक्षाप्रद
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