देखो तो जरा..
मैंनें सोचा कुछ और.. यहाँ हुआ कुछ और ही !
मुम्बई से मेरी बेटी आ गयी, और मैं तुम सब से किया अपना वादा भूलते भूलते बचा । वादा करने तोड़ देना गँदी बात होती है, न ? लेकिन मैं तो बच गया । तो हमारी बात यहाँ रुक गयी, कि...
भगवान जी अपने चक्र, गदा वगैरह वगैरह लेकर भला कैसे आ सकते हैं, वह तो किसी आदमी का भेष बना कर ही तो आयेंगे । तो, उन्होंनें आकाश से आवाज़ लगायी, कि तुम सब जन परेशान मत होना, मैं आऊँगा और सबको बचा लूँगा ।
यह सुन सभी सँतुष्ट होकर अपने अपने घर चले गये । कुछ ही हफ़्तों में ... चैत्र महीने की दूसरी तारीख को नसरपुर गाँव के रतनराय के घर एक बालक का जन्म हुआ । इसीलिये इस तिथि को सिन्धी अपना नववर्ष चेती-चाँद या चैटीचण्ड उत्सव से मनाते हैं ।
यह बड़े ही असाधारण बालक थे, नाम रखा उसका, उदय चन्द्र ! कुछ बड़े होते ही 11 वर्ष की उम्र से उदय चन्द्र अत्याचारों का विरोध करने लगे । उअनको लगा कि बातों से बात नहीं बननी है, तो अपने पिता रतनराय से कुछ धन लेकर एक छोटी सी सेना बनायी । इनकी सेना कुछ कुछ छापामार दस्ते की तरह थी । जहाँ कहीं परेशानी हुई, कोई लूट-पाट जोर-जबरदस्ती हो रही होती.. उदय चन्द्र अपने सिपाहियों के साथ चट से पहुँच जाते । फिर तो कई छोटे छोटे राजाओं ने भी अपनी सेनायें इनकी सहायता को लगा दीं । अब तो मर्खशाह जी कौनके नाम से कँपकँपी छूटने लग पड़ी ।
इनके सिपाही इतने फुर्तीले थे कि लोग इन्हें झाटी कहते थे । समझ रहे हो ना.. झाटी माने झपट्टा मारने वाला, दुश्मनों को झटका देने वाला । इधर उदयराज जी 16 वर्ष के हो चले थे.. उनकी झूमती हुई मस्त चाल लोग देखते ही रह जाते । अपने तेज रफ़्तार घोड़े पर नियँत्रण रखने को, और दुश्मनों के वार को बचाने को यह इतनी तेजी से अपने घोड़े पर झूल जाते कि लोग इनको प्यार से झूले लाल कहने लगे.. बल्कि कुछ जन तो इनकी पूजा भी करने लगे ।
जब वह दुःख में फँसे लोगों के गाँव पहुँचते तो, नारा लगा्ते हुये सूचना देते.. आयो लाल ! जरा सोचो कि जनता इस पर खुशी से चिल्ला पड़ती .. झूलेलाल ! इस तरह उन दिनों आयोलाल - झूलेलाल एक सार्थक नारा, विजय का एक नारा बन गया । मर्खशाह जी अब घबड़ाये, इनको समझौते के बुलाया । इन्होंने उससे सीधे सीधे कहा, " देख भाई तू बादशाह होगा यह और बात है । पहली बात तो यह कि ईश्वर एक है, सभी उस तक जाना चाहते हैं । लोगों ने अपने अलग अलग रास्ते चुने हैं । तू अपनी राह चलता जा, मैं अपनी राह चलूँ । यह एक रास्ते की भीड़ में घुसने से तो अच्छा है । उस तक पहुँचने में कौन किस रास्ते से कामयाब होता है, यह तेरा सिरदर्द नहीं है । हमको इसकी आज़ादी चाहिये, और वह तुझे देनी पड़ेगी ।"
अब बताओ भला, जो बात तु्म्हारे नन्हें मन में आसानी से समझ आ गयी.. वही बात इन श्रीमान जी को समझ में नहीं आयी । वह उल्टे अकड़ने लगे । झूलेलाल जी ने मन में एक फैसला किया, और लौट आये । आते ही उन्होंनें सबसे विचार किया और सिन्धु नदी के रास्ते से बदशाह जी पर हमला बोल दिया । साथ ही ज़मीन की तरफ़ से भी उनके सैनिकों को घेर लिया । बहुत लड़ाई करने की नौबत ही नहीं आयी, डरपोक बदाशाह भाई की हेकड़ी निकल गयी और वह हार मान कर झूलेलाल से रहम के लिये गिड़गिड़ाने लगे, बोले " हे ज़िन्दा पीर, हमसे गलती हुई हमें माफ़ कर दो ।"
उनको माफ़ कर दिया गया । सिन्ध में रहने वाले सभी धर्म के लोग इनको अपनी अपनी तरह से पूजने लगे । यह उनको सच्चाई और न्याय का उपदेश दिया करते थे । जब भी कोई सँकट आता.. लोग कहते, " झूलेलाल .. बेड़ापार !" अब तो यह नमस्ते का एक सिन्धी रिवाज़ बन गया है, वडि झूलेलाल का ज़वाब होता है आहो बेड़ापार ! उनके सम्मान में यह लोग एक दूसरे को साँई कहते हैं ।
अरे रे रे, कोई पूछ रहा है कि यह मछली पर क्यों बैठे हैं ? ठीक, वह ऎसा है कि पाली नाम की यह मछली पानी की उल्टी धारा में अपना रास्ता बनाते हुये चलती है, हार नहीं मानती । इससे सीख लेकर झूलेलाल जी ने इसको अपने ज़हाज़ों का पहचान चिन्ह बना दिया था । इसके सिन्धु नदी से जुड़े होने और झूलेलाल जी को जल के देवता ( वरूण देव ) का अवतार मानने से इस मछली को उनकी सवारी के रूप में दिखाया जाता है ।
इनको लाल साँई, उडेरोलाल, दूल्हालाल, ज़िन्दा पीर भी कहते हैं । और हाँ, इन्होंने इस दुनिया से विदा लेने से पहले ही कह दिया था कि इनका मँदिर हिन्दू, मुस्लिम और दुनिया के सभी धर्म के लोगों के लिये खुला रहेगा । तो ऎसे थे झूलेलाल .. आहो बेड़ापार !
और..यहाँ मैंनें देखा कि वैभव जी इतने ध्यान से सुन रहे थे कि उन्हें ध्यान भी न रहा कि उनके खुले हुये मुँह से लार टपकी पड़ रही है । बहुत छोटा है, मेरा वैभव ! लेकिन जया.. उसने खट से एक सवाल दाग दिया, " लेकिन आपको.. मेरा मतलब कि आपको यह बातें कैसे पता ?" लीजिये जैसे कि मैं कोई गप्प हाँक रहा था.. अरे आप लोग नेट पर इधर उधर सर्फ़िंग करते रहते हैं, 1. मैं अपना टाइम वेस्ट नहीं करता.. 2.यह सब यहीं से तो पढ़ा है !
धन्यवाद सबको, अगले महीने की तीस को मिलते हैं, असलियत की एक नयी स्टोरी के साथ । जय हिन्द !
डॉक्टर साहब को प्रणाम..बढ़िया कथा रही. अब अगले महिने ३० तारीख को!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया........."
जवाब देंहटाएंआपकी कथा और कहने का अंदाज़ दोनों ही मन को छू गए । एक नई जानकारी और वो भी इतने प्यारे अंदाज़ में .....अब तो हमें आपकी अगली पोस्ट का इंतज़ार है । धन्यवाद....सीमा सचदेव
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